अमन उपाध्याय कोई मांग रहा था देशी,और कोई फॉरेन वाला।वीर अनेकों टूट पड़े थे,खूल चुकी थी मधुशाला।शासन का आदेश हुआ था,गदगद था ठेके वाला।पहला ग्राहक देव रूप था,अर्पित किया उसे माला।भक्तों की लंबी थी कतारें,भेद मिटा गोरा काला।हिन्दू मुस्लिम साथ खड़े थे,मेल कराती मधुशाला।चालीस दिन की प्यास तेज थी,देशी...
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