हाय रे मेरा बचपन… हाय रे मेरा बचपन…
सुदामा सिंह ‘मस्त कलम’ अब क्या बताए, बिना बताए रहा भी नही जाता है। कोई भैया अपने पीयूष जी तो हैं नही की बिन... हाय रे मेरा बचपन…

सुदामा सिंह ‘मस्त कलम’

अब क्या बताए, बिना बताए रहा भी नही जाता है। कोई भैया अपने पीयूष जी तो हैं नही की बिन बताए या बिन टाइम टेबुल के रेलगाड़ी चला रहे है। खैर छोड़िए मर्जी अपनी। बस कार्बन कॉपी अपने लंगोटिया यार मीर साहब को जान लीजिए। बिना कुछ कहे सुने और जब तक दवाई नही तब तक ढिलाई नही को नज़रन्दाज़ किये बचवा रमफेरवा के हांथे से डोर पकड़ के पतंगबाजी का कमाल दिखाने लगे। मोहल्ले वाले जब उन्हें देख के कुछ कनफुन्सी करने लगे तो उन्होंने बिना लाग लपेट के जवाब दिया कि बस अपने मुल्क में यही तो कमी है । अरे समझा करो कि जब साठा तो पाठा। अरे अख्तरी ऐसे थोड़े गाइन रहीं कि अभी तो मैं जवान हूँ। रमफेरवा काठ के उल्लू मतीन अपने मीर चचा को कभी देख रहा था तो कभी आसमान की तरफ मगर कह नही पा रहा था कि चच्चा अब हमें उड़ाए देव। किसी अधिकारी के सीयूजी फोनवा पर अपनी मुसीबत कह भी नही सकता था। मैं पास के टुटहे चबूतरे पर  चचा भतीजे की हालत पर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। तभी ऊपर वाले ने मीर भाई के दिमाग का दरवज्जा खोल दिया। मीर साहब के कान में अज़ान की आवाज़ पड़ी। वह फौरन चरखी डोर रमफेरवा को थमाते हुए नमाज़ के लिए निकल पड़े।

   उनके जाने के बाद बदकिस्मती से रमफेरवा की पतंग कट गई। वह रोन्धी सूरत बनाये मुझे देखने लगा जैसे अपनी हार पर ट्रम्प जी अमेरिकी जनता की तरफ देख रहे है। मैंने रमफेरवा को बुला कर कहा,” अरे बचवा केतना बार तोहके सम्झौली कि ई पतंगबाजी, कंचा गोली और गुल्ली डंडा खेले के जमाना अब नाही रहल। अबतो किरकिट पर धिरकित धा के रियाज मारे के जमाना होखे। हमही को देखा कि हमरे बड़का बाबू जब ले जीयत रहे तब ले काव मजाल कि चरखी डोर और पतंग बाजी के हाँथ लगाए देइ। हमके याद है एक बार हमार नानी पियार के मारे पतंग और डोर लाये दिहिन तो बड़के बाबू नानी के जवन जवन बात सुनवलन कि बेचारु दुबारा हमारे ड्योढ़ी पे कदम न रखे के क्रिया खाये लिहिन। बड़का बाबू  डायरेक्ट कह दिहिन कि तूं हमरे बचवा के बिगाड़े आइल बाड़ू। घर के मालिक रहे बड़का बाबू। आज का जमाना होता तो एक भाई दूसरे भाई के बच्चों को या  भाई के रिश्तेदारों को मजाल कह दे। यही बात है कि मुझसे मेरा बचपन छीन लिया गया। मुझे पतंग डोर, गुल्ली डंडा, गोली कंचा नही मालूम। बस हाई कमान का ऑर्डर था कि अकेले स्कूल जाइये और जैसे छुट्टी हो सीधे घर आइये। शाम को चार से सात बजे तक के लिए छूट मिली थी। वह भी कालोनी की फील्ड में खेलने के लिए मगर बचवा रमफेरवा बड़का बाबू के सख्त हुकुम रहल की सात दस नही जानता हूँ। असल मे बड़का बाबुओं अपने जमाना के रिटायर्ड सूबेदार मेजर रहलन। एक दिन जिसे मैं आज भी नही भूल सका हूँ  लड़को के साथ गपशप में साढ़े सात बज गए। बस बड़का बाबू सन्टी लै के पहुंच गए फील्ड में और बिना कुछ कहे सुने चार पांच सन्टी लगावत भय बोले कितना बजा है रे रम्बोलवा? हम तुहे सात बजे तक के ऑर्डर दिहै रहे। आस पास के लोग हमरे बड़के बाबू के ई तमाशा देख के हक्का बक्का हो गए। उनमें से किसी ने दया दिखाते हुए कहा कि अरे बाबू साहब जाने दीजिए बच्चा है , भूल हो गई। हमरे बड़का बाबू जवन त्योरी चढ़ा के बोलले कि ऊ भल मनई के घिघ्घी बंध गयी। बाबू बेलाग कहिंन ,” सुना ढेर होशियार न बना। हमहू अपने ज़माना मा सूबेदार मेजर रहली। बड़का बड़का अफसर हमारे डिसिप्लिन का लोहा मानत रहलन। ई बतावा आपतो इसके जवान होने तक न जाने कहाँ रहबा बाबू जी , तब ले ई ससुरा रम्बोलवा लोफर आवारा निकस जाई तो हमरे परिवार को तो भुगतना होगा। ऊ बाबूजी एक चुप हजार चुप। बस आगे आगे बड़का बाबू और पीछे पीछे चोर मतिन हम। रास्ता भय बड़बड़ाते रहे। घरे पहुंच के तोहरे बड़की माई के डपटते हुए बुलवलन , सुना जी ढेर बड़की मलकिन बने से काम न चली। हमरे बाबा सोलह आना सही कहत रहे कि लरिकन के खियाव घी सक्कर मुला जहां एहर ओहर गड़बड़ाता देखो मारो एके टक्कर। ओहमें जरा सा सील मुलाहिजा देखौलु तो जिनगी भर माथा पकड़ के रोवे के पड़ी। अरे पहलवानी करे, दौड़ लगावे और कसरत करे। ई सब क्या है गुल्ली डंडा, पतंगबाजी और  कंचा गोली। एहसे शरीर बनीं? आजकल बड़के बंगला वाले  अपने सपूतन के किरकिट खेलावत बाड़ेंन। अरे हम अपने लरिका के लपटन जनरल बनाये के देसवा के नाम रोसन करे के अरमान सजावट बाटी। सुना काल से आधा सेर दूध रम्बोलवा केऔर बढ़ावा।

 बचवा रमफेरवा हम लपटन जनरल तो न बन पौली मुला डिसिप्लिन के दायरा में रहली। आजके लड़को को देखता हूं तो आंख में आंसू भर आता है। दुइ पहिया माई बाबू बैंक से कर्जा लेके काव थमाए दिहिन की बचवा लोग फर्राटा भरे लगे।किसी घर वाले ने पूछ लिया कि कहाँ जात हौ तो बस एक जवाब कही नही बस आ रहे हैं। बस आ रहे है मतलब आप अपने दुलरुवा केलिए तारे गिनते रहिये। बचवा रमफेरवा अब अपनी बात क्या कहें किससे कहें? सब का जवाब बस यही होगा कि वह जमाना और अब का जमाना कुछ और है। स्मार्ट इंडिया है भाई।

                       

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