

कश्मीर के भू-सामरिक महत्व पर मंथन
अयोध्या June 24, 2020 Times Todays 0

अयोध्या। डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्विद्यालय एवं भारतीय शिक्षण मण्डल, गोरक्ष प्रान्त के सयुंक्त तत्वावधान में ’जम्मू-कश्मीरः एक महत्वपूर्ण सामरिक भू-क्षेत्र’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ आज 24 जून को प्रातः 11 बजे किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय शिक्षण मण्डल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री, माननीय मुकुल कानितकर ने संगठन के ध्येय श्लोक से अपना उद्बोधन प्रारम्भ करते हुए ’सा विद्या या विमुक्तये’ को अर्थ विस्तार देते हुए शिक्षा एवं बौद्धिक समाज में,भारतीय मनीषा पर आधरित मूल्यपरक राष्ट्र निर्माण हेतु मुक्त परिचर्चा एवं गहन मंथन की बात कही।जम्मू-कश्मीर के भू-सामरिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए उसे अखण्ड भारत की संकल्पना का एक अपरिहार्य घटक बताया। अंत मे उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारतीय समाज के राजनीति वेत्ताओं, बुद्धिजीवियों का स्वंतंत्र, निर्भीक और तथ्यपरक लेखन तथा चिंतन इस प्रकार का हो जिसमें चीन के पाश में जकड़ा हुए बौद्धमयी तिब्बत के नैसर्गिक स्वंतंत्रता की चेतना के साथ ही, यूरोपीय यूनियन की तर्ज पर भारत के नेतृत्व में, भूटान, नेपाल, मलेशिया, श्रीलंका, म्यामांर आदि देशों के साथ एक ऐसे अखण्ड भारतीय महासंघ की यथार्थमयी परिकल्पना हो जो दक्षिण एशिया के साथ वैश्विक परिदृश्य में भारत के विश्व-गुरु की छवि को दृढ़ता प्रदान कर सके।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र से जुड़े एव कश्मीर मसलों के विशेषज्ञ श्री आशुतोष भटनागर ने जम्मू-कश्मीर के इतिहास के अनछुए पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुये, पूर्व में भारतीय नेतृत्व की त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित किया जिन्होंने कश्मीर मसले को जटिल बना दिया।उन्होंने कहा कि जिस राजनीतिक संकल्प शक्ति के साथ धारा 370 का निर्मूलन सम्भव हुआ है उसी संकल्प शक्ति के आधार पर कश्मीर के उस भू भाग को भी भारत के मस्तक में जोड़ना होगा जो अखण्ड भारत का ही भू भाग है, इसके लिए भारतीय विश्वविद्यालयों में जम्मू कश्मीर के भू सामरिक महत्व पर ऐसी विशद शैक्षणिक परिचर्चा की महती आवश्यकता है जिससे उद्भूत तथ्यों,तर्को से निष्कर्षो के आधार पर निर्मित रणनीति द्वारा अपने खोये भू भाग को प्राप्त कर अखण्ड भारत के सृजन द्वारा जम्मू-कश्मीर की भारत राष्ट्र के साथ अखण्डता के स्वप्न को लेकर शहीद हुए माननीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की जा सके।
वक्तृत्व के इस श्रृंखला में अपने विचार व्यक्त करते हुए संपूर्णानंद विश्विद्यालय के राजनीतिशास्त्रध्समाज विज्ञान विभाग के अध्यक्ष आचार्य शैलेश मिश्र ने,जम्मू कश्मीर भौगौलिक सरंचना के आधार पर उसके भू सामरिक महत्व पर टिप्पणी करते हुए गिलगिट ,बाल्टिस्तान आदि क्षेत्र को पाकिस्तान-चीन जैसे परम्परागत शत्रु राष्ट्रों की दुरभिसंधि से उपजे सीमा विवादों को निपटाने में प्रमुख अस्त्र बताया। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अवध विश्विद्यालय के कुलपति एवं महान शिक्षाविद, आचार्य मनोज दीक्षित ने सम्पूर्ण आयोजन समिति की तरफ से राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र की सफल परिचर्चा हेतु माननीय वक्ताओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए,ऐसे वैचारिक योद्धाओं को तैयार करने पर बल दिया जो अपने मष्तिष्क और कलम की समन्वयी ताकत से एक ऐसे परिवेश का निर्माण करें जो भारत-भारती के उस खण्डित स्वप्न की इस प्रकार शल्यक्रिया का संपादन सम्भव बनाएं जो अखण्ड भारत के बहुप्रतीक्षित स्वप्न को भूलोक पर अवतरित कर सके।

संगोष्ठी का प्रभावी संचालन इस शैक्षणिक विमर्श के समन्वयक शिवपति पी जी कॉलेज के राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष, डॉ अर्जुन मिश्र ने करते हुए इस प्रज्ञा-प्रवाह के गंग-तरङ्ग के अंतिम दिवस अर्थात 25 जून को पुनः सभी को सहभागी बनने का आह्वान किया। अंत मे राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी के प्रथम दिवस का समापन हुआ।
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