तूँ मुझको अच्छी लगती है, तुझे जोहता हूँ हर काल…. तूँ मुझको अच्छी लगती है, तुझे जोहता हूँ हर काल….
देवितूँ मुझको अच्छी लगती है, तुझे जोहता हूँ हर कालजीवन वट जड तना टटोला, पर्ण पुष्प गोदाई डाल।सुधासिक्त मधुमिश्रित वाणी, श्यामवर्ण कद मध्यमडाड़ीचंचल चपल... तूँ मुझको अच्छी लगती है, तुझे जोहता हूँ हर काल….

देवि
तूँ मुझको अच्छी लगती है, तुझे जोहता हूँ हर काल
जीवन वट जड तना टटोला, पर्ण पुष्प गोदाई डाल।
सुधासिक्त मधुमिश्रित वाणी, श्यामवर्ण कद मध्यमडाड़ी
चंचल चपल मीनअक्षि मादक, भृकुटिमधुप सुग्रीवाप्राणी
सुकनासिका अधरपटपंकज, अरुणोद्दत द्युतिदीप्त ललाट
पुंकेसर से पूर्ण स्फटिक, ऋक कपोल ललचाये काल।
कजरारे रेशमी मेघ जनु, विधु को घेरा करते हैं
संग वसे श्रुतिसारस मानो, महि का फेरा करते हैं
बृहतवक्ष कटिक्षीण चरणलघु, मलयपाणि दाड़िमबत्तीसी
कुमुदतन्तुसा मनमंजुलअति, मदमय मुक्त हस्तिकी चाल।
विष्णु प्रिया रघुवर की सिया, कान्हा की अन्तर्मणि राधे
तूँ सदा सर्वदा सत सबमें, हे शक्तिपरम् संसृति-साधे
तूने ही जना सारा जीनव, भस्मासुर कैसे उपराया
मोह त्याग संवेद्य घोंटती, कण्ठ पकड़ लाज रिपु व्याल।।
रचनाकार: डाo मनीराम वर्मा
गुवाँव (पालीपट्टी) टाण्डा, अम्बेडकरनगर
(उ.प्र.) मो0-9450491402

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