मेरी कलम से: हम किस जंगल राज में जी रहे हैं मेरी कलम से: हम किस जंगल राज में जी रहे हैं
सूर्यभान गुप्त आंगन में भीड़ है। भीतर बर्तन बिखरे पड़े हैं।उनमें दाल और कच्चे चावल हैं। दूर खेत में चिता से अभी भी धुआं... मेरी कलम से: हम किस जंगल राज में जी रहे हैं

सूर्यभान गुप्त

आंगन में भीड़ है। भीतर बर्तन बिखरे पड़े हैं।उनमें दाल और कच्चे चावल हैं। दूर खेत में चिता से अभी भी धुआं उठ रहा है।मेरे एक अजीज मित्र ने हाथरस के पीड़िता के घर से चंद लाइने भेजी। भीड़ लगी है। इसी बीच बलरामपुर हो गया। अगर 16 दिन बाद शासन 2500000 नौकरी घर देने को तैयार होता है।  कितने दिन में मिलेगा। उस पीड़ित बच्ची को न्याय।सोचना पड़ेगा। चलिए बलरामपुर की घटना भी शर्मसार करती है। हम किस जंगल राज में जी रहे हैं। ऊपर लिखा है चिता से अब भी धुआं उठ रहा है। आग उठनी चाहिए। दरिंदों को जलाने के लिए। बलरामपुर की बच्ची रिक्शा से उतरती है कहती है बहुत दर्द है। लगता है जान नहीं बचेगी। अस्पताल में वही होता है।मुश्किल से 15 दिन के बाद कन्या पूजन का कार्यक्रम शुरू हो जाएगा। कैसा विरोधाभास है। नवरात्र में हम पैर छूते हैं। खीर पूरी खिलाते हैं।गजब नाटक है। महात्मा गांधी ने कहा था जिस दिन में एक महिला आधी रात को सड़क पर निकलेगी। उस दिन समझूंगा भारत आजाद हो गया। कुछ ऐसे ही लिखा था फिलहाल आगे देखते हुए चलते हैं ।कुछ पत्रकारों के साथ बदसलूकी हो रही है। पूछता है भारत। कहां हो।

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