

किसान आयोग गठन समय की सबसे बड़ी जरुरत
अयोध्याजिलेराज्य September 26, 2020 Times Todays News 0

इस समय देश मे चारो तरफ कोरोना माहमारी के बीच किसान बिल की चर्चा है एक तबका ये दर्शाने में लगा हुआ है की इस बिल के पास होते ही किसान आज़ाद हो जायेगा जबकि दूसरा तबका ये सिद्द करने में लगा हुआ है की इसके पास होते ही किसान कॉर्पोरटे का गुलाम हो जायेगा । समझ में ये नहीं आता की एक बिल में इतना विरोधाभास कैसे की एक पक्ष इसे आज़ादी घोषित करे और दुशरा उसे गुलामी । एक बात तो तय है की किसान सांत है सायद उसे अब इन बिल विल की बाते फ़िल्मी लगने लगी है वैसे भी गावं गिराव में एक चर्चा आम है की तब जानो जब मुँह में जाय मत लब साफ है आम जान मानस में अब वो कोई भी मुद्दा जो तुरंत लाभ नहीं पहुँचाता उसका हो हल्ला मचने से सत्ता पक्ष को खासकर कोई भी लाभ मिलने वाला नहीं।हो भी क्यों ना उसको भी किसान सम्मान निधि के रूप में डायरेक्ट बैनिफिट जो मिल चूका है । ।मुद्दा अब सिर्फ ये है की कैसे किसानो की इनकम को बढ़ाया जाय । इस बिल में जिस तरह से हो हल्ला मचा हुआ है मुझे मनमोहन जी की सरकार का परमाडु अधिनियम की याद आती है की कैसे सत्ता पक्ष ये बताने में लगा हुआ था की अगर ये बिल पास हुआ तो बिजली कितनी सस्ती हो जाएगी ।जबकी विपक्ष तमाम तरह के आरोप लगाते हुए विरोध कर रहा था । खैर वो विधेयक पास हुआ और सत्ता ने अपनी पीठ थपथपाई की उसने बहुत बड़ा काम किया है ।मगर लगभग एक दसक बीतने के बात भी मुझे सस्ता ईधन कही नज़र नहीं आया । ठीक वही हाल इस किसान बिल का भी होगा क्योकि आज भी ज्यादा तर किसान जो की मंडी से दूर है उनका मूल्य सीधे मांग पूर्ति के आधार पर ही निर्धारित होता है हां अगर मूल्य पर कोई फरक पड़ा है तो वो है सिर्फ और सिर्फ सरकारी खरीद और उसका मूल्य निर्धारण सरकारी तंत्र द्वारा होना ।ागर मूल्य निर्धारण का अधिकार सरकार के पास है तो किसान को कोई फर्क नहीं पड़ता की मंडी पर नियंत्रण किसका है क्योकि सरकार को हर पांचवी साल जनता के दरबार में आना ही है ।
उदहारण के तौर पे शुगर मिल और उसके किसानो को देखते है शुगर मिल पर पूरा नियंत्रण कॉर्पोरेट का है सोसाइटी के माध्यम से किसान और सरकार दोनों का ही नियंत्रण बना हुआ है
जबकि मूल्य निर्धारण पूरी तरह सरकार के हाथ में है । थोड़ा बहुत चीजों को अगर हटाते है तो सबकुछ ठीक ठीक चल रहा है और एक किसान परिवार का होने के नाते मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है की इस प्रक्रिया से किसानो की माली हालत में बहुत सुधार हुआ है ।
अगर कुछ इसी तरह से या कुछ और बेहतर बाकि फसलों में भी हम कर पाते है तो चीजे बदल सकती है ।
अब बात आती है कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग की तो अभी इस पर कुछ कहना जल्द बाज़ी होगी ।मेरे विचार से तो अगर कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग पे विचार करना है तो सबसे पहले इस देश को एक किसान आयोग की जरुरत होगी क्योकि अगर ये अपनी परम्परागत प्रशाशनिक ब्यवस्था पूरी तरह सही से काम कर रही होती तो फिर देश में तमाम तरह के लोगो को पिछड़ा आयोग महिला आयोग आदि आदि की जरुरत नहीं पड़ती । कारपोरेट द्वारा अधिकारियो को मैनेज करना भी आसान होगा । और भॄस्ट नेता अधिकारी गठजोड़ स्थापित होने में देरी नहीं लगेगी । किसान आयोग अगर नहीं होगा तो गठजोड़ मिलकर किसान का शोषण करेंगे । और चूँकि नेता की डायरेक्ट जबाब देही बनती नहीं इसलिए सरकार भी अपना पल्ला झाड़ लेगी ।वैसे भी अगर एक ब्यवहारिक सर्वे किया जाय की आज के ४० साल पहले अगर किसी गावं में अगर कोई बहरी ब्यक्ति पहुँचता था तो अगर किसी ब्यक्ति का घर ठीक ठाक दीखता था तो वो समझ जाता था की किसी संपन्न किसान का मकान है । मगर अब अगर कोई ब्यक्ति उसी तरह का घर देखता है उसके मन में विचार आता है की ये घर किसी सरकारी कर्मचारी का है । मतलब हमारी नीतियों ने एक वर्ग जो जॉब देता था उसे मजदूर बना दिया है या फिर मज़दूर बनने की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है अब ऐसे वंचित वर्ग के लिए एक आयोग तो हर हाल में गठित होना ही चाहिए । । कभी कल्पना करिये की आप कोई प्रोडक्ट बना रहे है जिसकी लागत कितनी है आप से पूछे बगैर उपभोक्ता हितो का नाम देकर लागत से भी कम कर दी जाय तो आप कब तक प्रोडक्ट बनाते रहेंगे ठीक यही किसान के प्रोडक्ट के साथ भी हो रहा है । आज देश में भृस्टाचार की सबसे बड़ी इकाई सार्वजनिक वितरण प्रणाली किसानो की तरक्की का सबसे बड़ा रोड़ा बनकरखडी है वही अनाज गरीबो के नाम पर जारी होता है जबकि कालाबाज़ारी के माध्यम से खुले बाजार में आकर अनाजों का ुल्य प्रभावित करता है सरकारी खजाने पर बोझ पड़ने के साथ साथ किसानो की भी कमर तोड़ता है जरुरत है सार्वजनिक वितरण प्रणाली की धनराशि सीधे लाभार्थी के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाय पूरी प्रक्रिया साफ़ सुथरी हो जाएगी उधर अनाजों क ोभी खुला बाजार मिल जायेगा ।
आशा है क्रांतकारी एवं बड़े फैसले लेने वाली सरकार किसान आयोग के बारे में भी गंभीरता से विचार करेगी अगर ऐसा कुछ नहीं होता तो फिर पूर्व की सरकारों एवं वर्तमान सरकार में अंतर के नाम पे सिर्फ किसान सम्मान निधि के मात्रा ६ हज़ार रुपये ही बचेंगे जिससे केवल कुछ समय के लिए गुस्सा सांत किया जा सकता है उनकी स्थिति परस्थिति में अन्तर लाने का कोई इरादा नहीं दीखता और भविष्य में इस धनराशि को बढ़ाने की मांग भी होगी जिसके लिए सरकारों को तैयार रहना होगा ।
मनोज सिंह
सामाजिक कार्यकर्ता
.9919647231
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