

कुओं के संरक्षण के लिए भागीरथी प्रयास की जरुरत
कुशीनगरखेल जगत September 23, 2020 Times Todays News 0

डॉ ए एस विशेन/प्रेम प्रकाश
कुशीनगर
– समुदाय व प्रशासन के उदासीन रवैए से समाप्ति के कगार पर कुओं का अस्तित्व सनातन धर्म में कुएं का विशेष महत्व है। कई संस्कार ऐसे है जो कुएं के बिना पूरा नहीं होते। करीब दो दशक पूर्व तक पीने व सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण जल स्त्रोत के रूप में कुओं का समाज में सर्वोपरि स्थान था, पर समुदाय व प्रशासन के उदासीन रवैए से अब गांवों में कुओं का अस्तित्व समाप्त सा हो गया है। संस्कृति के गवाह कुओं के अस्तित्व को बचाने के लिए भागीरथी प्रयास की जरूरत है। बताना मुनासिब होगा कि 20 वीं सदी के अंत तक गांव एवं खेतों में कुओं की मौजूदगी एक सुखद एहसास दिलाती थी। गांवों के कुएं जहां अपने शीतल जल से प्राणियों की प्यास बुझाते थे वही खेतों के कुआं सिंचाई के काम आते थे। ये बरसात के पानी के संरक्षण द्वारा भूगर्भ जलस्तर बढाने के सर्वोत्तम साधन हुआ करते थे। धार्मिक संस्कारों में कुओं की पूजा आज भी होती है, पर संरक्षण के अभाव में इतिहास का विषय वस्तु बनते जा रहे इन कुओं को अब खोजना पड़ता है। इतना ही नहीं अग्निकांड जैसी दैवीय आपदाओं के समय कुआं बड़े काम के साबित होते थे। समाज के प्रबुद्ध वर्ग, सरकारी तंत्र व सामुदायिक उपेक्षा से तमाम गांवों में कुएं या तो अतिक्रमण के शिकार है या तो पाट दिए गए है। तमाम उदाहरण ऐसे है जहां कुछ लोगों ने कुओं को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रशासन के समक्ष शिकायती पत्र सौंपा। सम्यक कार्रवाई न होने से वे आज तक उपेक्षित है। हालांकि वर्तमान परिवेश में कुएं का पानी पीने के लिए अपेक्षाकृत कम सुरक्षित है और सिंचाई में भी ज्यादा श्रम लगता है बावजूद इसके कुओं के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। पहले कुओं की संख्या से ही गांव के समृद्धि का आंकलन कर लिया जाता था। बरवा राजापाकड़ के ज्योतिषविद् पं. श्री विनय पान्डेय जी’ बताया कि पहले कुओं का उतना ही महत्व था, जितना जीवन के लिए आक्सीजन की होती है। नई पीढ़ी ने इन्हें विस्मृत कर दिया है। जरूरत है कि प्रत्येक व्यक्ति भगीरथ बने और धरती पर मौजूद इस नायाब जल स्त्रोत का संरक्षण करें।
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