

बहुत कठिन है डगर पनघट की
अम्बेडकर नगरजिलेराज्यसम्पादिकीय की कलम से September 17, 2020 Times Todays News 0

डॉ. मनी राम वर्मा
वर्तमान वैश्विक महामारी में विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशानुसार भारत ने भी आँख-कान बन्द कर सबकुछ जहाँ का तहाँ रोक दिया। यह सब उस समय में किया गया, जब यहाँ सिर्फ समस्याओं का सन्देश आया था, हर जगह विषाणु नहीं। लोगों ने जैसे-तैसे खुद को सम्भाला। एक दूसरे की मदद भी की। देश को इससे उबरने के लिए चन्दा भी दिया। परन्तु रुकी अर्थव्यस्था में चालू सरकारी खर्च ने देश की कमर तोड़ दी। सारा संचित कोश बचाव के प्रोटोकाल में खर्च हो गया। एक बड़ा हिस्सा देश की बड़ी आबादी को सम्भालने में लग गया। यदि इससे कुछ बचता तो पड़ोसी मुल्कों की घुड़कियों से बचने के लिए अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित महाविनाशक हथियारों को जुटाना भी देश की मजबूरी हो गयी। आज ऐसी मुश्किल घड़ी में जहाँ सारा ध्यान जनसुरक्षा और धनोत्पादन पर होना चाहिए था वहीं युद्धक माहौल देश की अस्मिता के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। अब तक तो हमारी सरकारों ने कमर कसी लेकिन अब उनका भी पाजामा ढीला हो रहा है। शायद इसीलिए दुनिया का दूसरा बड़ा कोविड संक्रमित देश होने के बावजूद भी यहाँ धीरे-धीरे सबको अपनी ही दशा में सम्भलने-चलने को छोड़ दिया जा रहा है। खैर इतने दिन की यात्रा में सरकारों का अनुभव बड़ा ही कशैला रहा-‘कहते न बनै सहते न बनै, मन ही मन पीर पिरइबो करै।‘ उस समय की उनकी घोषणाओं के बादल आज बिना बरसे ही छँटते जा रहे हैं। क्या करें बेचारे महात्मा जी। उन्होंने तो सोचा भी नहीं रहा होगा कि बहुत कठिन है डगर पनघट की।
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