

बचपन में अरमान बहुत थे
अवर्गीकृत September 13, 2020 Times Todays News 0


——-‘ग़ज़ल’——-
बचपन में अरमान बहुत थे.
सच से हम नादाँन बहुत थे.
खोया पाया जो भी मैने
कहने में आसान बहुत थे.
मतलब की इस दुनियाँ के
रिस्तो से अनजान बहुत थे.
कीमत बस पैसे वालो की
बाकी तो इंसान बहुत थे.
सपने पूरे हो न सके पर
दिल में दबे तूफ़ान बहुत थे.
‘प्रदीप’वफ़ा की राहो पर
चलने वाले परेशान बहुत थे.
प्रदीप कुमार तिवारी
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