

दोषी व्यवस्था का दंड भोगते तदर्थ शिक्षक
उत्तर प्रदेशराज्य September 11, 2020 Times Todays News 0

स्वतंत्र भारत में लार्ड मैकाले के निस्यंदन सिद्धांत के इतर शिक्षा को सर्वजनसुलभ और जीवनोपयोगी बनाने हेतु अबतक गठित विश्वविद्यालय आयोग,मुदालियर कमीशन,कोठारी आयोग,राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986,आचार्य राम मूर्ति समिति और नई शिक्षा नीति 2020 के मूल उद्देश्य और संकल्पना यद्दपि की कमोवेश एक दूसरे की पर्याय ही हैं,तथापि शिक्षा की गुणवत्ता में दिनोदिन होती गिरावट और शिक्षकों की हीन दशा का दिनोदिन सुरसा का मुंह बनना एक यक्षप्रश्न और कि सोचनीय है।कदाचित कहना अनुचित नहीं होगा कि हालांकि सभी आयोगों और समितियों के प्रत्यावेदन देशकाल परिस्थिति के अनुरूप बिल्कुल सही और सटीक थे किंतु तबसे लेकर आजतक किसी भी केंद्रीय या प्रांतीय सरकारों ने इन आयोगों की सिफारिशों को शतप्रतिशत कार्यान्वित नहीं किया।जिससे शिक्षा सरकारों की कठपुतली और प्रशासनिक तंत्र के हाथों की गुलाम बनकर रह गयी।अलबत्ता इससे शिक्षा के व्यापारीकरण को जहां बढ़ावा मिला वहीं शिक्षकों की विभिन्न श्रेणियां भी अस्तित्व में आईं।जिनमें तदर्थ शिक्षक,व्यावसायिक शिक्षक,कम्प्यूटर शिक्षक और कि पेंशन विहीन आयोग चयनित शिक्षक भी शामिल हैं।फलतः आज जहां सभी श्रेणियों के शिक्षक विशेषकर तदर्थ शिक्षक अपने ही आशियाने से बाहर होने की कगार पर हैं,वहीं सत्ता और सरकारों का इनके भविष्य को लेकर नकारात्मक रवैया अख्तियार करना न तो शिक्षा जगत के लिए हितकर है और न ही इन शिक्षकों के प्रति ही फलदायी है।सार संक्षेप में यही कहा जाना समीचीन और उपयुक्त होगा कि तदर्थ शिक्षकों की दुर्दशा का मुख्य कारण सरकारी तंत्र की विफलता और सरकार द्वारा अपनी विफलता का दोषारोपण इन शिक्षकों पर किया जाना है।
ध्यातव्य है कि माध्यमिक शिक्षा अधिनियम,1921 की व्यवस्था के मुताबिक 1981 से पूर्व शिक्षकों का चयन अध्याय-दो की धारा 16(ई)11 व धारा-18 के तहत किया जाता था।किंतु वेतन आयोग के लिए गठित रिजवी समिति ने जब माध्यमिक शिक्षकों की स्थिति को लेकर नकारात्मक टिप्पणियां की औरकि इन्हें ब्लो स्टैण्डर्ड कहा तब माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष और विधानपरिषद में नेता शिक्षक दल ओम प्रकाश शर्मा ने 24 घण्टों से अधिक समय तक सदन में जोरदार वक्तव्य देकर शिक्षकों के प्रति रिजवी समिति की टिप्पणी का प्रतिकार किया ।जिसके एवज में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग,1981 अस्तित्व में आया।
चयन आयोग,1981 के अस्तित्व में आने पर हालांकि सभी प्रकार की शिक्षकों की भर्तियां आयोग द्वारा ही सम्पादित करने की व्यवस्था प्रख्यापित की गई औरकि धारा-18 को समाप्त भी कर दिया गया।दिलचस्प बात तो यह है कि चयन आयोग ने स्वयम अपनी ही धारा-33 को कठिनाई निवारण आदेश के नाम से प्रख्यापित करते हुए व्यवस्था दी कि जबतक चयन आयोग पूर्णतया कार्य सम्पादन नहीं करता तबतक कठिनाई निवारण आदेश,द्वितीय,1982 के तहत आयोग से चयनित अभ्यर्थी के कार्यभार ग्रहण करने या मूल पद धारी के अपने मूल पद और वापस आनेतक अल्पकालिक नियुक्तियां जारी रहेंगीं।जिसके तहत 25 जनवरी 1999 तक प्रदेश में नियुक्तियां हुईं और विनियमित भी हुईं।द्रष्टव्य है कि इसीबीच 1996 में धारा-18 को पुनर्जीवित करते हुए विद्यालयों में मौलिक रिक्त पदों के सापेक्ष तदर्थ नियुक्तियों के अधिकार जहां मंडलीय चयन समिति को सुपुर्द किये गए वहीं प्रधानाचार्यों की स्थिति में पदोन्नति होने पर यह अधिकार जिला विद्यालय निरीक्षकों को दिए गए,जोकि आज भी जारी हैं।किंतु 30 दिसम्बर 2000 को मंडलीय चयन समिति के भी अधिकार सीज करने के साथ ही विद्यालयों में कठिनाई निवारण और धारा-18 द्वारा शिक्षकों की नियुक्तियों और पदोन्नति पर ग्रहण लग किया।किन्तु इस बीच अधिनियम की धारा 16(ई)11 अस्तित्व में बनी रही।
शिक्षा ,शिक्षक और शिक्षार्थी तीनों ही के लिए नेक उद्देश्यों को लेकर गठित चयन आयोग अपने गठन काल से ही सरकारी भेंड़ बनता चला गया।लिहाज़ा ये स्वयम सरकारों द्वारा समय समय पर भंग होता रहा।जिससे विद्यालयों में रिक्त पदों पर चयन बझता गया और विद्यार्थियों की शिक्षा व्यवस्था बेपटरी होती गयी।अन्ततः प्रबंधनों को व्यापक छात्रहित में वर्षों से रिक्त पदों पर अधिनियम की धारा 16(ई)11 के तहत अल्पकालिक और मौलिक दोनों ही प्रकार के रिक्त पदों पर नियुक्तियां शुरू हुईं औरकि माननीय उच्चन्यायालय के आदेशों के समादर में ऐसी नियुक्तियों का विधिमान्य अनुमोदन सहित वेतन भुगतान भी अबतक जारी है।स्थिति यहांतक बदतर है कि 20-20 वर्ष गुजरने के बावजूद चयनबोर्ड अभीतक पर्याप्त शिक्षकों का चयन नहीं कर सका।2011,2013,2016 वर्षों के विज्ञापन अभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं हैं।वर्ष 2011 में चयन बोर्ड द्वारा प्रदेश के 975 प्रधानाचार्यों हेतु घोषित विज्ञापन आज भी बन्द बक्शे में है।हालात तो यहांतक बदतर हैं कि फैज़ाबाद मण्डल हेतु सम्पन्न 2014 के साक्षात्कार के परिणाम भी आजतकघोषित नहीं हो सके हैं।वर्ष 2013 के प्रधानाचार्य चयन विज्ञापन के साक्षात्कार अभीतक प्रारम्भ नहीं हुए हैं।ऐसे में प्रश्न उठना लाजिमी है कि आखिर इसके पीछे दोष किसका है?जब चयन बोर्ड समय से शिक्षकों और प्रधानाचार्यों का चयन नहीं करता तो शिक्षा का दायित्व निर्वहन करने वाले तदर्थ शिक्षक और प्रधानाचार्य आखिर दोषी कैसे हैं?वस्तुतः ये सारी कमी और दोष सरकारी व्यवस्था का है जिसका दण्ड आज तदर्थ शिक्षकों को भोगना पड़ रहा है।
शिक्षा व्यवस्था का समग्र मूल्यांकन करने पर एकबात स्प्ष्ट होती है कि आज तदर्थ शिक्षकों का विनियमितीकरण वक्त की मांग तथा समय की नजाकत है अन्यथा इन शिक्षकों के साथ साथ लाखों परिवारजन भुखमरी के शिकार होंगें जो किसी भी स्थिति में न तो ग्राह्य है और न स्वीकार्य है।अतः उत्तर प्रदेश सरकार को विनियमितिकरण अध्यादेश प्रख्यापित किया जाना ही नई शिक्षानीति को साकार करने की दिशा में मील का पत्थर होगा।
-उदयराज मिश्र
अध्यक्ष,माध्यमिक शिक्षक संघ,अम्बेडकर नगर
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