

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामनाथ मेहरोत्रा के पुण्यतिथि पर विशेष
अम्बेडकर नगरअयोध्याजिलेसख्सियत September 7, 2020 Times Todays News 0


आजादी के दीवानों इन शहीदों व सेनानियों के बलिदान एवं उनके त्याग को देश कभी भुला नही सकता। उक्त उदगार व्यक्त करते हुए अयोध्या नगर निगम के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय ने कचेहरी स्थित स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भवन में अमर सेनानी रमानाथ मेहरोत्रा की पुण्य तिथि पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि रमानाथ बाबू ने फैजाबाद के स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक नई दिशा दी थी। उक्त अवसर पर बोलते हुए कोआपरेटिव बैंक के सभापति धर्मेन्द्र प्रताप सिंह टिल्लू ने कहा कि आजादी के इन दीवानों के प्रति हम सभी से जो भी बन पड़ेगा, हम अवश्य करेंगे। केन्द्रीय दुर्गापूजा एवं रामलीला समन्वय समिति के जिलाध्यक्ष मनोज जायसवाल ने कहा कि आज आवश्यकता है कि देश के इन शहीदों के त्याग व बलिदान को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया जाय, जिससे आने वाली पीढ़ी इनके बार में जान सके व समझ सके। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये पूर्व विधायक माधव प्रसाद ने कहा कि देश पर मर मिटने वालों की स्मृतियों को अक्षुण्य रखने के लिए सरकार को सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। कार्यक्रम में बोलते हुये अधिवक्ता संघ के एल्डर्स कमेटी के चेयरमैन कृपाल चन्द खरे ने उपस्थित जनों के बीच बाबू जी के अपने स्मृतियों को रखा। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुये परिषद् के संयुक्त संचिव केशव बिगुलर एडवोकेट ने कहा कि बाबू रमानाथ जी का सानिध्य हम सबको बचपन से ही मिला और उन्होने सदैव हम लोगों का उत्साहवर्धन ही किया। विषम परिस्थित में भी हम सब का हौसला वे सदैव बढ़ाते रहे, बाबू जी के बताये मार्ग पर चलकर हम सेनानियों और उनके परिजनों के हित में कार्य कर रहे हैं। इस अवसर पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेंद्र प्रताप सिंह और उग्रसेन मिश्रा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

रामनाथ मेहरोत्रा का संक्षिप्त जीवन परिचय………
अंबेडकर नगर के शहजादपुर मोहल्ला के एक प्रतिष्ठित परिवार में पैदा हुए। अकबरपुर के साथ ही फैजाबाद के धारा रोड पर इनका आवास स्थित है।रमानाथ की उम्र 14-15 वर्ष की ही थी, जब वे आजादी की लड़ाई के प्रतीक बनकर उभरे। हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान उनका प्रिंसिपल से राष्ट्रीय ध्वज लगाने को लेकर विवाद होता रहा। क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन की आवश्यकता थी और यह आवश्यकता पूरी करने के लिए रमानाथ क्रांतिकारियों की उस टोली में शामिल थे, जिसने सरकारी कोष लूटा। इस मामले में राजनाथ गिरफ्तार कर लिए गए। 1940 में नौवीं की पढ़ाई के साथ स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष की भूमिका में उन्होंने प्रभावी छाप छोड़ी। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ और आंदोलन में शामिल होने के चलते काशी विद्यापीठ के जिन छात्रों को गिरफ्तार किया गया, उनमें रमानाथ भी शामिल थे। बनारस जेल से छूटने के बाद वे लखनऊ पहुंचे और नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए डीएवी छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। फैजाबाद कारागार में महान क्रांतिकारी अशफाक उल्लाह के बलिदान स्थल को तीर्थ का स्वरूप प्रदान किया। आपातकाल के दौरान उन्हें मीसा में जेल काटनी पड़ी। 1994 में चिरनिद्रा में लीन हुए।
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