

उहै जमाना नीक रहा
अम्बेडकर नगरजिलेसाहित्य जगत August 31, 2020 Times Todays News 0

उहै जमाना नीक रहा दुइ चारि लोग जब पढ़ल रहेन।
बुढ़वा जवान बेटवा पतोह सब लोग लुगाई कढ़ल रहेन।।
गोरु चौवा में मस्त रहेन संतोष रहा तब जीवन में।
मानवता कई दिया जलै तब राति दिना भर गौव्वन में।।
छीनाझपटी कपरफुटव्वल आज मती तब नाय रही।
भौजी अस्सी बरस के होइके डेहरी में कत्तों लुकाय रही।।
लाज रही तब मर्यादा इज्जत सबकी सम्मान रहा।
आधा पेट भलेन सब खायेन देशवा पे अभिमान रहा।।
घुरहू काका रहमान मौलवी साथ बजारे जात रहेन।
नेवता बरात मरना जीना सब एक दूजे के साथ रहेन।।
आज किताबी कीड़ा घरघर हरदम धौंस देखाय रहेन।
अपने दादा के उल्लू कौवा जाने का अउर बताय रहेन।।
गुंडई लुच्चई इज्जत बनिगे खादी तरे तोपाई गयी।
बदमाशी अय्यासी सबकुछ जाने कहाँ हेराइ गयी।।
घरेघरे गलवां घाटी सम द्वन्द चलत बा छाती पर।
पढेलिखे सब लोग लुगाई बहस करें मिलि जाती पर।।
भूलि गइन मर्यादा भौजी बिटिया सबै सिखाई दिहिन।
ससुराले में बाति बाति पे दंगल रोज मचाई दिहिन।।
दिनभर फोन रहे हाथे मा बाति बाति पे चूमेलिन।
इनसे कौन कहे कि रउरी कहाँ दिनाभर घुमेलिन।।
स्मार्टफोन अइसन आयसि कि आगि लगाएसि पानी मा।
व्हाट्सऐप में राति बिताएनि लागेसि तलब जवानी मा।।
काम करे के बेला लखिके बिस्तर मा मूड दबाई रहिन।
जनो भूत चुरइन पकडेसि नखडा कुछ और बनाई रहिन।
हारि मानि ओझा सोखा तब गइन नैहरे मस्ती मा।
बुढ़वा बुढ़िया कै फिकिर कहा आगि लगी हो बस्ती मा।।
लड़िका सयान बिटिया पतोह सबकेसब अब पढ़ल हवै।
लोकलाज कुल मर्यादा से आन्हर जइसन कटल हवै।।
-उदयराज मिश्र
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