

शिक्षक: एक सामाजिक आईना
अयोध्याजिलेराज्य August 18, 2020 Times Todays News 0

उदयराज मिश्र
साहित्य जहां ज्ञान का अजस्र कोष वहीं शिक्षक समाज का ऐसा दर्पण होता है।जिसको देखने मात्र से राष्ट्रीयता, समीप जाने से स्नेह,सानिध्य पाने से ममत्व का बोध ही नहीं होता अपितु जिसके जीवन दर्शन से समाज आईने की तरह अपनी शक्ल देखता है।अतः कदाचित शिक्षक को सामाजिक मुकुर कहा जाना यथार्थतः सत्य है। दुर्भाग्य से सम्प्रति शिक्षक द्वारा की जाने वाली आलोचनाओं को बहुतेरे राजनैतिक चश्मे से देखने लगते हैं।जिससे शिक्षक को भी जातिगत व दलगत आरोपों को झेलना पड़ता है।जबकि शिक्षक मूलतः शिक्षक होता है,वह कभी भी दुर्दशाओं को बर्दाश्त नहीं कर सकता,राष्ट्रीयता को क्षति न तो पहुंचाता है और न किसी को पहुंचाने देता है।सत्य तो यह है कि जिस दल को शिक्षक वोट देता है,उसकी भी कमी मिलने पर सर्वप्रथम आलोचना करता है।इसप्रकार शिक्षक मत देने के बावजूद दलनिरपेक्ष प्राणी होता है।जिससे आचरण,सभ्यता, व्यवहार के उच्च मानदंडों की ही कल्पना की जाती है। समस्या तो यह है कि आज हिंदुत्व खतरे में है,अतः भाजपा को जिताइये औरकि आज इस्लाम खतरे में है सपा को लाइये औरकि दलितों को राजा बनना हो तो बसपा और कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ ग़ैरहिन्दुत्व का एजेंडा लेकर आगे बढाइये।कदाचित इसप्रकार की घटिया सोच ने ही देश का सर्वाधिक विनाश किया है,जनता का अहित किया है। सभी लोगों को ध्यातव्य है कि भाजपा,सपा,बसपा,कांग्रेस व अन्य पार्टियां सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक दल हैं,कोई धर्म नहीं हैं।फिर आखिर ये धर्म की आड़ में सियासत क्यों करती हैं?,ये सोचनीय है।वस्तुतः ये पार्टियां धर्म और धार्मिक मुद्दों की आड़ में वास्तविक समस्याओं पर बड़ी चालाकी से पर्दा डालती रहती हैं।जनता भी भावनाओं के प्रवाहन में झूठमूठ का विकास देखती बहती रहती है।अस्तु जनमानस को चाहिए कि वे राजनैतिक पार्टियों को धर्म न समझें और धर्म को धर्म ही रहने दें अन्यथा स्थिति और भी बदतर होनी तय है।-
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