

शहादत के बदले मिली आजादी का अस्तित्व
अयोध्याजिलेराज्य August 18, 2020 Times Todays News 0

डाॅ0 मनीराम वर्मा
आज सम्पूर्ण भारत वर्ष में आजादी के जस्न को महापर्व की तरह मनाने की परंपरा सी बन गयी है। स्वतंत्रता प्राप्ति की घटना का एक नाटक के रूप में पुनः अभिनय किया जाता रहा है। इन समारोहों को अब तक रंगारंग जलसे मनाकर, झांकिया निकालकर, प्रदर्शनियां सजाकर तथा सार्वजनिक भाषण देकर मनाया जाता रहा है, जो इन समारोहों के मुख्य आकर्षण बनकर रह गये हैं। कभी-कभी तो यह लगता है कि यह समारोह खोखले नाटक हैं। हमें इतिहास के क्षणों को पुनः दुहरा लेने मात्र से सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। हमें पीछे मुड़कर देखना होगा। हमें इस बात का मूल्यांकन करना होगा कि हमने आजाद होने के पश्चात अपनी स्वतंत्रता तथा लोकतन्त्र को मजबूत करने के लिए क्या किया है। यह सर्वविदित है कि सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक एवं राजनैतिक आजादी के लिए व्यावहारिक सन्तुलन बहुत जरूरी है। इसके अभाव में उत्पन्न समस्याओं से भारतीय स्वतंत्रता का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। वर्षों की गुलामी सहने और लाखो देश वासियों को खोने के बाद हमने यह बहुमूल्य आजादी पायी है। लेकिन आज उस शहादत को याद रखने में हम कमजोर होते जा रहे है, जो हमारी घटती राष्ट्र भक्ति को बयां करता है। जिस आजादी के लिए हमने राष्ट्रभक्त वीरों की आहुति दी है उस आजादी को ससम्मान बचाए रखना हमारा धर्म है। हमें देश को भ्रष्टाचार नशाखोरी बेकारी गरीबी और अज्ञानता से मुक्ति दिलाने की कोशिष करनी चाहिए। देश को शायद आज एक और स्वतंत्रता संग्राम की आवश्यकता है, जिससे लोकतन्त्र की जड़ों को कमजोर करने वाली ताकतों का शमन सम्भव हो सके। आज हमें सावधानी पूर्वक इस बात का विश्लेषण करना चाहिए कि किन कारणों से हम गुलाम बने थे। हमें इस बात को समझना चाहिए कि आम आदमी पर गुलामी का क्या प्रभाव था तथा आजादी से उसमें क्या-क्या उम्मीदें बंधी थीं। पिछले 73 वर्षों से लगातार स्व-शासन के पश्चात हम इस जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते कि हमने ऐसे कौन से कदम उठाए हैं, जिनसे वह कारण नष्ट हो जाए, जो आजादी को उन जनमानस के लिए अर्थहीन बना देते हैं, जिनके लिए आजादी की लड़ाई लड़ी और प्राप्त की गयी थी। देश के सर्वहारा समाज की यातनाओं की दुहाई देकर तो हमारे नेताओं ने साम्राज्यवाद से मुक्ति पा ली थी, परन्तु आज उसकी सामाजिक एवं आर्थिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि आम नागरिकों में विशेषकर सबसे कमजोर वर्ग, ऐतिहासिक रूप से शोषित तथा पारम्परिक रूप से दलित वर्ग के लोगों ने स्वतंत्र होने को किस रूप में महसूस किया है। विदेशी शासन से मुक्ति किस भी राष्ट्र के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ होता है, परन्तु परन्तु आजादी को इस तरह याद करना चाहिए कि जन सामान्य को आत्म सम्मान के साथ जीने का सुअवसर प्राप्त हो सके।
स्वतंत्र भारत की मर्यादा को कायम रखने के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक कर्मठता का पाठ सीखे और अपने चरित्र बल को ऊँचा बनाए। इसके लिए जनता एवं सरकार, दोनों को मिलकर देश के विकास में बराबर की भागीदारी निभानी होगी। मूल रूप में युवा ही देश के विकास की रीढ़ है। उसे देश को शक्ति-सम्पन्न गौरवपूर्ण बनाए रखने के लिए सदैव तटस्थ रहना होगा। भारतीय स्वतंत्रता का मंगलपर्व इस बात का साक्षी है कि दुनिया में यदि किस अनमोल-अमूल्य सत्ता की कल्पना की जाती है तो उसमें देश कव सच्चे सपूतों की देनदारियों को विस्मृत नहीं किया जा सकेगा। उन अनेक देशभक्त शहीदों का नाम भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में ससम्मान लिया जाता रहेगा, जिन्होंने भारत के सिर पर आजादी का ताज रखने के लिए अपना उत्सर्ग किया है। आज के दिन हमें एकता और देश की रक्षा का पाठ पढ़ना चाहिए। आजादी के बाद भारत की प्रगति को देखकर कहा जा सकता है कि आज भारत दुनिया भर में सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक शक्ति के रूप में भी उभर रहा है। भारतीय युवा अपनी प्रतिभा एवं क्षमता का लोहा पूरी दुनिया में मनवा रहे हैं। गावों का तेजी से विकास हो रहा है। महिलाएं भी पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं। यहां की प्राकृतिक सम्पदा, लोक-शक्ति और तकनीकी विकास ने दुनिया सारे देशों को इस ओर ध्यान देने के लिए मजबूर सा कर दिया है। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी अभी हमारे विकास की भारी सम्भावनाएं हैं। यदि हमारी क्षमता के अनुरूप हमारे संसाधनों का उपयोग सम्भव हो सका, तो अवश्य ही हम दुनिया के शक्ति सम्पन्न प्रमुख देशों में से एक होंगे। हमारे यहां रोजगार का अभाव नहीं होगा। सारी दुनिया के लोग यहां रोजगार पाने के लिए आएंगे। प्रतिदिन अनर्तराष्ट्रीय मुद्रा के सापेक्ष कमजोर हो रही भारतीय रूपये की स्थिति को सुधारा जा सकेगा। शायद तब, जन सामान्य भी आजादी के सही मायने समझ सकेगा।
धर्मनिरपेक्षता भी भारतीय प्रजातन्त्र की प्रमुख विशेषता रही है। यहां लिंग, जाति, धर्म आदि किसी भी आधार पर नागरिकों में विभेद नहीं किये जाने का प्राविधान रहा है, किन्तु विगत वर्षों से साम्प्रदायिकता की स्वार्थपूर्ण कुटिल राजनीति के कारण भारत की धर्मनिरपेक्षता की भावनाओं को काफी ठेस पहुंची है। इसके अतिरिक्त कुछ विघटनकारी शक्तियों ने भी देश के भीतर अपनी जड़ें स्थापित कर ली हैं। हमें ऐसी साम्प्रदायिक ताकतों एवं देश की विघटनकारी शक्तियों का विरोध कर अपनी राष्ट्रीय एकता की रक्षा किसी भी कीमत पर करनी होगी। स्वतंत्रता दिवस हमें आजादी की लड़ाई की याद दिलाता है। यह हमें किसी भी कीमत पर भारतीय गणराज्य की रक्षा करने की प्रेरणा देता है। इतिहास साक्षी है कि अनेक धर्मों, जातियों, और भाषाओं वाला यह देश अनेक विसंगतियों के बावजूद सदैव एकता के सूत्र में बंधा रहा। यहां अनेक जातियों का आगमन हुआ और वे धीरे-धीरे इसकी मूल धारा में विलीन होती गयीं। उनकी परम्पराएं, विचारधाराएं एवं संस्कृतियां इसके साथ एकरूप होती गयीं। भारत की यह विशेषता आज भी ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं। भारत के नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम इस भावना को नष्ट न होने दें, बल्कि इसको और भी अधिक पुष्ट बनाएं। स्व-शासन के 73 वर्षों के इतिहास में जहां करोड़ों लोगों को स्वतंत्रता का भरपूर लाभ मिला हैं, वहीं आज लाखो लोग ऐसे भी हैं, जो अब तक आजादी के फायदों से वंचित रहे हैं। जो त्रुटिपूण्र नियोजन, योजनाओं के गलत क्रियान्वयन, कुप्रशासन, भ्रष्टाचार तथा प्रशासन तंत्र की असफलताओं के कारण उन सुविधाओं से भी वंचित हो गये हैं, जिनके सहारे वे आजादी से पहले सुखद जीवन निर्वाह कर रहे थे। आज हमे इस बात पर विचार करना चाहिए कि इतने वर्षों में हमने क्या पाया और क्या खोया है।
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