विलुप्त होती जा रहीं पक्षियों की प्रजाति विलुप्त होती जा रहीं पक्षियों की प्रजाति
दिनेश कुमार वैश्य बाबा बाजार मवई अयोध्या/विभिन्न प्रजातियों की छोटी बड़ी चिड़ियों एवं पक्षी क्रमशः तोता मैना,बुलबुल,वन मुर्गी,पेड़की, तिलोरी,गौरैया, सुनहरी एवं रंग बिरंगी चिड़ियों,वाज,कालीचितकबरी,चील... विलुप्त होती जा रहीं पक्षियों की प्रजाति


दिनेश कुमार वैश्य

बाबा बाजार मवई अयोध्या/
विभिन्न प्रजातियों की छोटी बड़ी चिड़ियों एवं पक्षी क्रमशः तोता मैना,बुलबुल,वन मुर्गी,पेड़की, तिलोरी,गौरैया, सुनहरी एवं रंग बिरंगी चिड़ियों,वाज,कालीचितकबरी,चील ,नीलकंठ,कठफोड़वा ,तीतर ,बटेर ,कबूतर बगुला ,सारस ,मोर, उल्लू (छोटा, बड़ा)कौवा, हंस, चमगादड़, खंजन पछी, हरिल पछी , टिटिहरी,घाघ (पछी) कबूतर श्याम, सफेद पक्षियों एवं चिड़ियों की प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं बुजुर्गों की माने तो उनके बचपन के समय दिखाई पड़ने वाले सैकड़ों पक्षियों व चिड़ियों के बड़े बड़े झुंड वर्तमान समय देखने को नसीब नहीं है जहां इन पक्षियों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है वहीं छुट्टा मवेशियों की तादाद में इजाफा हो रहा है क्षेत्र के विभिन्न स्थानों प्रमुख चौराहों कस्बों में व गांव की गलियों मे  कभी भी  छुट्टा मवेशियों के बड़े-बड़े झुंड को देखा जा सकता है जो खून पसीना से तैयार की गई गरीब किसानों की लहलहाती फसलों को छुट्टा   मवेशी आनन-फानन में चट कर देते हैं । इसके अलावा छुट्टा मवेशियो  की बात दरकिनार  नीलगाय से प्रकोप से  आम किसान की चिंता दिनों दिन बढ़ती जा रही है  क्षेत्रीय किसानों की माने तो ये  नील गाय 30 /40 की  तदात में जिस खेत में प्रवेश करते हैं उसे खेत की लहलहाती हरी-भरी फसल देखते ही देखते  चट कर देते है  और किसान की मेहनत की कमाई की रकम से तैयार की गई  फसल  को नष्ट   कर देते  है बताते चलें हल्की-हल्की ठंड होने से बसंत ऋतु तक भारी संख्या में छोटे बड़े पक्षियों के बड़े-बड़े झुंड प्रातः के समय उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा की ओर आहार-विहार एवं दाना चुगने हेतु आसमान में नजर आते थे और शाम ढलते ही उसी तरह झुंड के झुंड दक्षिण से उत्तर दिशा को रात विश्राम बसेरा हेतु लौटते  नीले आसमान में दिखाई देते थे और अब कभी-कभार भी नहीं देखने को मिलते कुछ प्रजातियों को छोड़कर अन्य चिड़ियों -पक्षियों की नस्ल देखने को लोगों की आंखें तरस रही है ज्ञातव्य हो कि पहले जब किसी पशुपालक के पशु की मौत होती थी तो रैदास जाति का व्यक्ति मृत पशु के शरीर का खाल निकालने हेतु जब फेंकने के स्थान डनगारही पर ले जाते थे  तो नीले आसमान में सैकड़ों की संख्या में बड़े-बड़े चमर गिद्ध जिसे (जटायु के वंशज)व चितकबरी चील,दिखाई देते थे परंतु अब हालत यह है कि मृत पशुओं को सियार ,बिल्ली, कुत्ता,लोखंडी,लोमड़ी व मांसाहारी जीव के सिवा अन्य कोई मांसाहारी पशु-पक्षी पूछने वाला नहीं है डॉगरही(मृत पशु फेंकने का स्थान)में पड़े-पड़े मृत पशु के सड़ जाने से संक्रामक रोग फैलता ही है और उससे उत्पन्न दुर्गंध से आस पड़ोस मे निवास करने वाले लोग परेशान व पीड़ित रहते हैं दूर दृष्टि रखने वाले गिद्ध राज के दर्शन,दुर्लभ हो गए है हाइब्रिड व्यवस्था नीति के चलते खाने पीने की कई साग सब्जियों एवं फलों की पैदावार व नस्लों में इजाफा हुआ ।परंतु कोई ऐसी तकनीक का अभी तक व्यवस्था सर्वविदित नहीं हुई है जिसके प्रयोग से पुरानी प्रजाति के पक्षियों चिड़ियों जो दिनोंदिन शनै शनै विलुप्त,होते जा रहे हैं उनकी बढ़ोतरी की जाए और वातावरण में पक्षियों की चह- चहाहट,लोगों को सुनाई पड़ेज्ञात हो कि मई-जून के मौसम में कोयल की कूक और सावन भादो के महीने में मोर की पीहक /पीहूक  लोगों को सुनाई पड़ती थी जो अब कभी कभार को छोड़कर इन आवाजों के लिए लोगों के श्रवण  (कान )तरस रहे हैं ।बताते चलें कि बट वृक्ष पीपल, पाकर आम ,गुल्लर ,बरगद, महुआ ,जामुन के पेड़ों बबूल, बैर के पेड़ व कटीली झाड़ियों  की टहनियों ने अपना-अपना घोंसला एवं झोंज बनाकर अपनी प्रजातियों की उत्पत्ति हेतु छोटी बड़ी चिड़िया पक्षी का घोंसला(घर)अब देखने को नहीं मिलता बया चिड़िया के घोसले का बखान (वर्णन )करना संभव नहीं है इनके घोसले पर बरसात के पानी तेज हवाओं के थपेड़ों और आंधी तूफान का कोई असर नहीं पड़ता है परंतु मौजूदा समय में बया पक्षी का घोंसला एवं इनकी प्रजाति के दीदार मयस्सरनहीं है जहां एक ओर विभिन्न प्रजातियों की चिड़ियों की प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं वहीं दूसरी ओर कीड़े-मकोड़े जैसे मच्छर ,डांसभुंगा,माटा,खरामकरा,चीटा, मसा आदि प्रकार के कीड़े-मकोड़ों की संख्या में प्रत्येक वर्ष बढ़ोतरी होती जा रही है परंतु अनेक प्रकार के जानलेवा कीड़े-मकोड़ों जो मच्छरों से उत्पन्न होने वाले संक्रामक रोगों को बढ़ावा देते हैं पर नियंत्रण हेतु संबंधित विभाग द्वारा कोई कारगर कदम समय से नहीं उठाया जा रहा है हां इतना जरूर है कि अभिलेखों में सब कुछ समय पर और नियमानुसार विधिक ढंग से दर्शाया जाता है जो चिंता का विषय है क्षेत्र के शिव कुमार मौर्य,रामकुमार शर्मा,हंस राम यादव,राम पाल पाल,मुकेश कुमार,अनुराग पांडे,वीके श्रीवास्तव,सत्यनाम साहू  राम नवल कमल राजकरण,भोला पांडे, रामजन्म मौर्य,दुर्गेश कुमार यादव,प्रकाश यादव,विनोद कुमार पाल,राजेश कुमार यादव आदि लोगों का कहना है कि एक समय ऐसा था कि भोर में चिड़ियों एवं पक्षियों की चहचहाहट से आंखें खुलती थी परंतु अब टेलीविजन व टच मोबाइल पर गुड मॉर्निंग संदेश से सुबह आंखें खुलती है मई-जून में कोयल की कूक सुनने को कान तरस रहे हैं साथ ही छुट्टा पशुओं की अजीबोगरीब आवाजों ने लोगों की नींद हराम कर दी है।
         

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