कुछ तो कीजै दयानाथ! हम शरण तिहारे आये हैं।। कुछ तो कीजै दयानाथ! हम शरण तिहारे आये हैं।।
आर्तनादहलधरप्यारे मुरलीधर, नन्ददुलारे जसुदानन्दनअसुरसंहारक कुब्जातारक, हे राधेमय! अर्पित वन्दन।अन्दर बाहर ज्ञान सनातन, कर्म सदा करते अधुनातनज्ञानयोगकी अविरल धारा, कभीन मेटा किसीका क्र्रन्दन।प्रज्ञाचक्षु पुष्ट प्रत्यक्षवाद,... कुछ तो कीजै दयानाथ! हम शरण तिहारे आये हैं।।

आर्तनाद
हलधरप्यारे मुरलीधर, नन्ददुलारे जसुदानन्दन
असुरसंहारक कुब्जातारक, हे राधेमय! अर्पित वन्दन।
अन्दर बाहर ज्ञान सनातन, कर्म सदा करते अधुनातन
ज्ञानयोगकी अविरल धारा, कभीन मेटा किसीका क्र्रन्दन।
प्रज्ञाचक्षु पुष्ट प्रत्यक्षवाद, मिथ्या पाखण्डी परुष बात
अधम चरित नित कमतर पातक, की बतलाता छलीघात।
षोडषकलाधर हे लोकेश्वर! जगतनियन्ता जगतीपालक
चमत्कार के प्रबल पुंज प्रभु, जण-चेतनके नित संचालक।
कंशासुर से दुर्योधन तक, सबको उचित दिखाई राह
आज फंसी संसृतिकी तरणी, इसे उबारो सुनो कराह।
रोज द्रोपदी नंगी होती, बार और बाजारों में
अभिमन्यु को मारा जाता, घेकके नित दरबारों में।
अश्वथामा शिशुपाल पूतना, घूम रहे आबादी में
अट्टहास उनका सुन पड़ता, लोगों की बर्बादी में।
बाढ़ कोरोना छली बेमानी, सब शिवशूल सधाये हैं
कुछ तो कीजै दयानाथ! हम शरण तिहारे आये हैं।।
रचनाकार: डाo मनीराम वर्मा
गुवाँव (पालीपट्टी) टाण्डा, अम्बेडकरनगर
(उ.प्र.) मो0-9450491402

Times Todays

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