


अमन उपाध्याय
कोई मांग रहा था देशी,और कोई फॉरेन वाला।वीर अनेकों टूट पड़े थे,खूल चुकी थी मधुशाला।
शासन का आदेश हुआ था,गदगद था ठेके वाला।पहला ग्राहक देव रूप था,अर्पित किया उसे माला।
भक्तों की लंबी थी कतारें,भेद मिटा गोरा काला।हिन्दू मुस्लिम साथ खड़े थे,मेल कराती मधुशाला।
चालीस दिन की प्यास तेज थी,देशी पर भी था ताला।पहली बूंद के पाने भर से,छलक उठा मय का प्याला।
गटक गया वो सारी बोतल,तृप्त हुई उर की ज्वाला।राग द्वेष सब भूल चुका था,बाहर था अंदर वाला।
हंस के उसने गर्व से बोला,देख ले ऐ ऊपर वाला।मंदिर मस्जिद बंद हैं तेरे,खुली हुई है मधुशाला।
पैर बिचारे झूम रहे थे,आगे था सीवर नाला।जलधारा में लीन हो गया,जैसे ही पग को डाला।
दौड़े भागे लोग उठाने,नाक मुंह सब था काला।अपने दीवाने की हालत,देख रही थी मधुशाला।🥂
मंदिर-मस्जिद बंद कराकर ,लटका विद्यालय पर ताला !सरकारों को खूब भा रही ,धन बरसाती मधुशाला !!
डिस्टेंसिंग की ऐसी तैसी , लाकडाउन को धो डाला ! भक्तों के व्याकुल हृदयों पर रस बरसाती मधुशाला ।।
बन्द रहेंगे मंदिर मस्ज़िद ,खुली रहेंगी मधुशाला।ये कैसे महामारी है ,सोच रहा ऊपरवाला ।।
अमन उपाध्याय
सुल्तानपुर
9161151874
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