प्रश्न में मैं उलझा प्रश्न में मैं उलझा
 हे नाथ  मेरी सुन लो, पुकार में रहा हूं।  कुछ प्रश्न में मैं  उलझा, परेशान हो रहा हूं।  कहता है सब जमाना, कण-कण में तू हो... प्रश्न में मैं उलझा


 हे नाथ  मेरी सुन लो, पुकार में रहा हूं। 
 कुछ प्रश्न में मैं  उलझा, परेशान हो रहा हूं। 
 कहता है सब जमाना, कण-कण में तू हो रहते। 
 हर  दृश्य में बसे हो, ऋषि संत भी ये कहते। 
 माने न कोई में हियसे, जो देख मैं रहा हूं। 
 हे नाथ मेरी सुन लो, पुकार मैं रहा हूं। 
 ज्ञान की सब बातें, व्यवहार से अलग हैं। 
 हिय में बने दो घर हैं, रहते अलग अलग हैं। 
 सिद्धांत सब सही है, स्वीकारते सभी हैं। 
 अपना है कौन पराया, ना भूलते कभी है। 
 सत्य रूप है प्रभु का, हिय में सभी के रहते। 
 न्यायी को हिय  में रख कर, अन्याय से न डरते।
 इस प्रश्न का सही हल, नहि  ढूंढ पा रहा हूं।  
 हे नाथ मेरी सुन लो, पुकार मैं रहा हूं।
 कुछ प्रश्न में मैं उलझा, परेशान हो रहा हूं।

डॉ. बलराम त्रिपाठी

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