जाकी रही भावना जैसी…… जाकी रही भावना जैसी……
जाकी रही भावना जैसी………गोश्वामी तुलसी दास रचित मानस की ये चौपाई सुनते या सुनाते ही मन सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है एक बार... जाकी रही भावना जैसी……

जाकी रही भावना जैसी………गोश्वामी तुलसी दास रचित मानस की ये चौपाई सुनते या सुनाते ही मन सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है एक बार महाभारत में एक प्रशंग आता है जिसमे यक्ष धर्मराज युधिस्ठिर से पूछता है की सत्य क्या है और धर्म राज उसका उत्तर देते है की केवल मृत्यु सत्य है। इसका मतलब तो यही निकलता है की बाकि सब मिथ्या है मगर सायद अगर इसका ये अर्थः निकाला गया तो  अतिसयोक्ति होगी मेरे विचार से केवल मृत्यु को छोड़कर बाकि जितने भी सत्य या असत्य का निर्धारण है वो सब टाइम बीइंग है अर्थात समय्नुसार बदलती रहती है सब कुछ आपकी सोच पर निर्भर करता है आपको गिलास आधा भरा दिखता है अथवा खाली। ठीक उसी प्रकार आज सनातन के शिखर पुरुष प्रभु श्री राम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण पर भी लागु होता है अगर किसी का ये तर्क है की मंदिर निर्माण से कोरोना नहीं भागेगा तो उसका अपना नजरिया है मैंने कही पे पढ़ा था की एक बार किसी देश में अकाल पड़ गया था उस राजा ने प्रजा में पैसा बाटने के लिए जो तरीका अपनाया वो कुछ इस तरह था की उसने बिल्डिंग बनवाई उसके बदले में मजदूरी दी परन्तु फिर भी काम जब कम पड़ गया तो उसने उसको गिराकर फिर से बनवाने को कहा जिससे  लोगो को रोजगार मिलता रहे और उनके अंदर अकर्मण्यता का भाव भी न पनपने पाये । अब कोरोना जैसी महामारी के समय में ये मंदिर निर्माण कितने ज्यादा रोजगार अपने साथ ला रहा है इन लोगो को नहीं दीखता और उसपर भी  जब इसमें सरकारी धन भी नहीं खर्च होगा तब  भी गिलास इनको खाली ही दिखे तो गोश्वामी जी की वो चौपाई बरबस ही याद आ जाती है अब कोई काल्पनिक माने तो माने हमको गिलाश आधा भरा दीखता है ।

राम हमारी सनातन की आत्मा है उनके अंदर एक आदर्श पुत्र जो की पिता के वचन के लिए राज पाठ छोड़ता है  एक आदर्श पति जो पत्नी को ढूढ़ने के लिए जंगल जंगल भटकता है। सबरी के जूठे बैर खाकर भावना को अर्थ के ऊपर स्थापित करता है दूसरे योनि में जन्मे वानर रीछ जटायु आदि से मित्रता करके पूरी मानव जाती को ये सन्देश देता है की बाकी की तरह आप भी प्रकर्ति का ही अंग है और सही मायने में यही मानव धर्म है जिसमे वसुधैव कुटुंबकम की भावना निहित है।हम सबको साथ साथ ही रहना है . एक आदर्श राजा जो की रामराज्य की स्थापना करता है जिसमे राजतन्त्र होने बाद भी जनता में असंतोष हो इसके लिये अपनी खुशियों की तिलांजलि  दे देता है अब आप के ऊपर है की आप उसको किश चश्मे से देखते है। मेरे विचार से मैनेजमेंट के विद्यार्थियों के लिए राम एक बहुत ही बड़े नायक के रूप में दीखते है कल्पना करिये की आपको समुन्द्र पर पूल बनाना है.

आपके पास मानव संसाधन नाम, की कोई चीज नहीं है फिर आप का  नायक  राम आपको बताता मिलेगा की मैंने तो बन्दर भालुओ आदि से भी ये सब करवा लिआ था फिर आप क्यों नहीं कर सकते सायद उनका यही पैगाम उन विद्यार्थियों को होगा जो आधुनिक भाषा में कुछ इस तरह बया होगा  की मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये .

मंदिर बनने के बाद दुनिया के हर कोने में बसा सनातनी अपने जीवन में एक बार अयोध्या आना चाहेगा और जो आएगा कुछ न कुछ दे कर ही जायेगा देश की पर्यटन इंडस्ट्री में कितना बड़ा उछाल आएगा विशेषज्ञ ये समझ सकते है आने वाली पीढ़ी हमसे ये सवाल जरूर पूछेगी की आखिर  हमने देश को इतनी  बड़ी उपलब्धि देने में इतनी देर क्यों की इस सवाल के जवाब के लिए हमारी आस्था को काल्पनिक बताने वाले लोग तैयार रहे .

मनोज सिंह

सामाजिक कार्यकर्ता

मोब-९९१९६४७२३१

Times Todays News

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