


मेजर (डॉ. )बलराम त्रिपाठी
अचरज भरा खेल जगत में है जो दिखता।
उसी को आज समझा रहा हूं।
सवारी के लिए जो घोड़ा मिला था।
उसी का दास्तां सुना रहा हूं।
घोड़े को तो मालपुआ खिलाते।
सवार को भूखे तड़पा रहा हूं।
घोड़ा ही अब मालिक बन बैठा।
सवार का अस्तित्व ही मिटा रहा हूं।
इसी को कर ले तू ध्यान अब से।
निवेदन आप तक पहुंचा रहा हूं।
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