चल छोड़ दे ज़िद अपनी चल छोड़ दे ज़िद अपनी
कोई भी क़ौम बुरी नही, बुरी है बुराई,गीता, क़ुरान, बाईबल सबका सार है,सच्चाई__ ग़र इंसानियत ही ना रही तो क्या करोगे,मंदिर और मस्जिद का... चल छोड़ दे ज़िद अपनी

कोई भी क़ौम बुरी नही, बुरी है बुराई,
गीता, क़ुरान, बाईबल सबका सार है,
सच्चाई__

ग़र इंसानियत ही ना रही तो क्या करोगे,
मंदिर और मस्जिद का ??
बलि चढ़ गयी ग़र इंसानियत तो,
धर्म कैसा और कैसी धर्मिकता ??

अरे ओ बावले इंसान ! क्या सोचकर बैठा है ?
ज़ुल्म से जीत लेगा जहाँ ??
ये धर्म कैसा और कैसा मज़हब है ??
चल छोड़ दे ज़िद अपनी
हो जा सबका और कर ले सबको अपना_

यही धर्म भी है और यही है सच्चाई।
यही है क़ुरान और गीता का सार भी यही है।

उर्वशी शुक्ला_
पूर्व प्रधानाध्यापिका,

समाज सेविका, प्रदेश प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी

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