


खोजता उनको रहा, मस्जिद कभी मंदिर में।
आफत कैसी आई है, इस समय जमाने में।
कोहराम मच रहा है, क्यों तेरी सृष्टि में?
घर से निकलना दुश्वार, हुआ शहर और बस्ती में।
कपाट बंद मिले जब, मस्जिद और मंदिर देखा।
हैरान तब हुआ जब, गेट पर नोटिस देखा।
दर्शन दूंगा तुझे सफेद, और खाकी वर्दी में।
संग सदा मिलूंगा, सभी सफाई कर्मी में।
मंदिर मस्जिद में बहुत, विश्राम किया।
सब के दुख दूर करूं, यह रूप अब मैंने लिया।
पूजा इसी रूप में अब,
मैं स्वीकार करूं।
उपेक्षा इनकी हो कभी, ना अंगीकार करूं।
मेजर (डॉ. )बलराम त्रिपाठी
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