


सन्नी गुप्ता ‘मदन’
आत्माओं का मिलन है ,
प्रेम क्या जाने हवेली।
है कोई कितना अकिंचन,
या सुखद मधुमास जैसा।
प्रीत को किसकी पड़ी है,
सोचता है कौन कैसा।
लग रही दादा को दादी,
आज फिर दुल्हन नवेली।
कौन खाई में पड़ा है,
चोटियों पर कौन होगा।
भेद करते इन विषय पर,
प्रेम होगा मौन होगा।
प्रेम में स्पष्ट सबकुछ,
कुछ नहीं होती पहेली।
नेह हो यदि नीर से तो,
रेत में मृग खोज लेगा।
दूर है तो सोचना क्या,
दूर से मन ओज लेगा।
प्रेम में दुश्वारियां क्या,
प्रेम है सच्ची सहेली।।
No comments so far.
Be first to leave comment below.