

बाँके सिपहिया
अम्बेडकर नगरजिलेसाहित्य जगत July 14, 2020 Times Todays News 0

रामचन्द्र वर्मा ‘साँची’
झुर-झुर बहै मस्त पुरुवइया मोरे बाँके सिपहिया ना।
दादुर फुदकै वंशी टेरै कोइल नीद उड़इया ना।
दुश्मन सीमा पर चढ़ि आये तोहका सतावै अँउहइया ना।
घरमाँ घुसिके दिखावै अँखिया रहि-रहि के गोली चलइया ना।
कइ उपवास से तोहका पालिन काट्या दूध मलइया ना।
देश की लजिया से बोझी बाटय मजधारे डूबत बाय नइया ना।
कायर बनिके दिलवा तोड़़्या जानित हमना करित सगइया ना।
राणा शिवा के वंशज तुम हो रोटिया घास की खवइया ना।
नाव चलाके पार उतारिन ना लिहिस केहू से उतरइया ना।
माँग में सेन्हुर गोड़े मेहावर पहिना चूड़ी कलइया ना
घर में बैठा पहिरा लुगरी हम सीमा पर करब लड़इया ना।
लक्ष्मीबाई कय बनब सहेली दौराइब जंग की पहिया ना।
उठा जवान तब ताड़ी ठोंकिस गरजा सुनो मुदइया ना।
नीद नारि प्रानी का त्यागिस सीमा पर कीहिस चढ़इया ना।
हिरकय न पाई घर दुश्मनवा, चाहे कटी गटइया ना।
वीर सपूतन का ‘‘साँची’’ नमन करै बिन तन, मन से देय बधइया ना।।
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