


सुरहुर पेंड अगाध फल , पंछी मरिया झूर !
बहुत जतन कै खोजिया , फल मीठा पै दूर ! !
जो भी व्यक्ति आध्यात्मिक या व्यावहारिक जीवन मे एक लक्छ्य बनाकर कार्य को करता है उसी के लक्छ्य की पूर्ति मे बीच (रास्ते) मे बहुत बाधाएं उत्पन्न होती हैं या बाधाएं उत्पन्न की जाती हैं उसे सुलझाने मे सहज ही कामयाबी मिल जाती है. वह अपने लक्छ्य के प्रति अग्रेसित हो जाता है यानी उस बाधा को दूर कर अपने मंजिल की तरफ चल पडता है. जब तक लक्छ्य रूपी मंजिल मिल नही जाता है तब तक वह मनुष्य अपने लक्छ्य के प्रति जागरूक रहता है. निश्चिंत या निष्फिक्र नही होता है. उसकी तो रात दिन की नींद ही गायब हो जाती है . 🌷🌹 अध्यात्म का जो मूल लक्छ्य है वह है चित्त की स्थिरता , मन की शांति , मोक्छ , समाधि , कैवल्य , आत्मकल्याण , और सहज जीवन. इस लक्छ्य मे जो भी बाधा आती है उसे पूर्ण कर हर साधक (साधु , संत) का परम कर्तव्य होता है कि अपने मंजिल रूपी समाधि मे पहुँच कर ही आत्म विश्राम करे. जब तक समाधि रूपी लक्छ्य प्राप्त न हो जाये तब तक धीरे धीरे अपनी मंजिल की तरफ बढता रहे कहीं उलझे नहीं. महर्षि पतंजलि जी का मूल लक्छ्य पहले समाधि तक पहुंचना फिर अंत मे कैवल्य को प्राप्त कर जन्म जन्मातरों के दुखों से छुटकारा पाकर दुखों से सर्वथा मुक्त हो जाना है. इस मंजिल तक पहुंचने मे जो बाधाएं सामने उन्होंने देखा उसका निराकरण कर करके आगे बढते चले गये. महर्षी पतंजलि जी के आठ अंगो मे पहले ” यम ” है. यम लक्छ्य को कहते हैं. किसी भी मनुष्य ने अगर अपना लक्छ्य बनाया आध्यात्मिक या व्यावहारिक कोई भी हो तो उसे उसके नियम मे चलना पडेगा तभी मंजिल रूपी लक्छ्य को भेद सकता है अर्थात सहज भाव मे उसे प्राप्त कर सकता है. लक्छ्य बनने के बाद उसके नियम मे चलना अनिवार्य होता है. नियम का पालन अगर सुचारू रुप से हो रहा है तभी मार्ग के मार्ग के रोडे (व्यवधान) समझ मे आते हैं अन्यथा उसी रोडे (व्यवधान)मे उलझ कर दुखों मे पडे रह जाते हैं. समाधि को प्राप्त करने के लिये जब हम बैठते हैं मन को साधने के लिये तब यह मन रूपी बेवकूफ हमारे साथ वहां भी तो उपस्थित रहता है, और बडी ही बारीकी से कहता है कि कमर मे दर्द हो रहा है. पैर मे नसें दब रही हैं जिससे खून का सर्कुलेशन नही हो पा रहा है. पीठ मे दर्द हो रहा है इत्यादि. इस मार्ग के रोडे को सुलझाने की दृष्टि से महर्षि पतंजलि जी ने आसन की खोज की. आसन करने से शरीर हल्का व मासपेशियों मे खिंचाव , नसों मे दबाव आदि खत्म हो हो जाते है थोडी देर के लिये. इस एक बाधा को दूर करने की विधि खोजी जो आसन के रूप मे निकल कर आया. अब दूसरी बाधा आकर खडी हो गयी श्वांस नलिका का. श्वांस नलिका की व्यवधान को दूर करने के लिये प्राणायाम की व्यवस्था की खोज की गयी. प्राणायाम कर लेने से श्वांस नलिका का व्यवधान खत्म हो जाता है. ।
7007880656
No comments so far.
Be first to leave comment below.