

कम्पनी शासन की राहों पर बढ़ता भारत
अम्बेडकर नगरजिलेराज्यसाहित्य जगत July 14, 2020 Times Todays News 0

डाॅ0 मनीराम वर्मा
2011 की जनगणना के अनुसार भारत दुनिया का दूसरा महादेश है। सवा अरब से अधिक आबादी यहां के विभिन्न राज्यों में असमान घनत्व में प्रवास करती है। यहां अरुणांचल प्रदेश में जहां जनसंख्या घनत्व 17 व्यक्ति प्रति वर्ग कि0मी0 है, वहीं बिहार में 1102 व्यक्ति प्रति वर्ग कि0मी0 प्रवास करते हैं। केन्द्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक दिल्ली का घनत्व 11297 है, जबकि अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह में 46 व्यक्ति प्रति वर्ग कि0मी0 निवास करते हैं। सम्प्रति भारत में न्यूनतम् जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र दिवांग घाटी (अरुणांचल प्रदेश) और सम्बा जनपद (जम्मू कश्मीर) है, जहां एक से दो व्यक्ति प्रति वर्ग कि0मी0 निवास करते हैं। इस प्रकार असमान रूप से प्रवासी आधुनिक भारत की बड़ी आवादी का भरण-पोषण करने के लिए वर्तमान में देश मे लगभग 5.18 करोड़ उद्यम/प्रतिष्ठान सेवारत हैं। इनमें से ग्रामीण क्षेत्रों में 61.06 प्रतिशत तथा नगरीय क्षेत्रों में 38.94 प्रतिशत उद्यम आर्थिक विनिर्माण में सहायक भूमिका निभा रहे हैं। यहां रोजगार उपलब्ध कराने वाले क्षेत्रों में विनिर्माण क्षेत्र (25.25 प्रतिशत) खुदरा व्यापार (24.91 प्रतिशत) पशुपालन (9.13 प्रतिशत) श्रमिक/मजदूर आधारित प्रतिष्ठानों में से ग्रामीण क्षेत्र में (3.80 प्रतिशत) तथा शहरी क्षेत्र में (1.70 प्रतिशत) अन्य सामुदायिक क्षेत्रों में (7.3 प्रतिशत) तथा अन्य निजी क्षेत्रों में लोगों को पूंजीवादी प्रबन्धन के सहारे रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। आज हमारी सरकारें भी विदेशी कम्पनियों को खूब न्यौता दे रही हैं, जो यहां के संसाधनों को भरपूर इस्तेमाल करके यहां की सरकार को थोड़ा सा टैक्स श्रमिकों को मजदूरी और वातावरण को प्रदूषण देकर शेष सम्पूर्ण लाभ अपने हिस्से में ले रही हैं। आज देश का 95 प्रतिशत धन 5 प्रतिशत लोगों के पास है, जबकि 95 प्रतिशत लोगों को मात्र 5 प्रतिशत धन से गुजारा करना पड़ रहा है। लोगों की समग्र प्रतिष्ठा का आधार उनकी आर्थिक सम्पन्नता हो गयी है। सर्वहारा दलितों का शोषण करने का नितप्रति नया अध्याय अख्तियार किया जा रहा है। एक ओर निरीह लोग अपने बचाव पक्ष में लगें हैं, तो दूसरी ओर बाहुबलीगण शासन प्रशासन और अनुशासन को अपने अधीन कर लिए हैं। उन्होंने जब से सत्ता का स्वाद चखा है, तब से योग्यता के आध्ाार पर लोगों को ऊपर जाने का मौका नहीं दिया जा रहा है। सम्पन्नता के आधार पर लोग सामाजिक सम्मान के हकदार हो रहे हैं। इसी लोक प्रतिष्ठा के लोभ में ईमानदारी, आदर्श और मर्यादा का हा्रसमान नियन्त्रित होने का नाम ही नहीं ले रहा है। सिर्फ आर्थिक सबलता से निर्मित सत्ता के प्रभाव मंे होने वाले कार्यों से लोकव्यवहार की जगह लोकव्यापार को बढावा मिल रहा है। लोगों ने अर्थ नीति और नारी की जातीय पहचान भुलाकर उसे सिर्फ उपभोग-विलास का साधन मान रखा है। शायद इसीलिए इन तीनों का बाजारीकरण होता जा रहा है। लोग इनके अर्जन के तरीकों को विस्मृत कर अर्जित मात्रात्मक उपलब्धता पर ध्यान केन्द्रित करके अपनी धर्मात्म गरिमा के मूल चारित्रिक आदर्श को भूलते जा रहे हैं। हमारी सरकारें भी ऐसी हैं, जो उद्योगपतियों की बढ़त को ध्यान में रखकर अपनी नीतियां बना रही हैं। उनके इशारे पर यहां की विधायिका व कार्यपालिका नीतियों का निर्माण व क्रियान्वयन सुनिश्चित करती है। देश की सभी बड़ी पार्टियां ऐसे ही दिग्गजों को चुनाव मैदान में उतारना चाहती हैं। कभी-कभी तो बिना किसी प्रयास के ही ऐसे लोगों को राज्य सभा का सदस्य नामित कर दिया जाता है। प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से देश के शासनतन्त्र पर इनका ही वर्चस्व हो गया है, जो सिर्फ अपने ही भले की परवाह करती है। गुलामी के दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था में अपने लाभंश को बढ़ाने के लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी जो कार्य करती थी, आज भारतीय कम्पनियां भी ठीक वही कार्य कर रही हैं। उनका परोक्ष प्रभाव बीते दिनों की ताकत से कुछ कम नहीं है। उनकी मर्जी ही देश की बड़ी आबादी का भविष्य सुनिश्चित करती है। शासनतन्त्र की अनेक निधियां उनके कोषों का पोषण करने में संलग्न हैं। यहां की मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवाद के नाम पर पूंजीवाद का दबदबा बढ़ता जा रहा है। समता-साम्यता की बातें इवाई हो गयी हैं। राष्ट्र का गौरव खतरे में है। अखण्ड भारत में खण्डित अध्यादेशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा रहा है। शायद इसका भावी स्वरूप ईस्ट इण्डिया कम्पनी से कहीं ज्यादा भयावह होगा और तब देश फिर से गृहयुद्ध की कगार पर खड़ा होकर नई सुबह की प्रतीक्षा में भावी वीर सपूतों का पुनः आह्वान करता नजर आएगा।
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