


घोड़े दिल्ली जा डटे,सारथि उनके साथ।हाथ छोड़ सब एकजुट,गहे पायलट हाथ।।
राजनीति किसकी हुई,किससे रखती वैर।यहां कोरोना भय नहीं,नहीं है कोई गैर।।
घनचक्कर के फेर में,यूँ उलझे गहलोत।माधव की इक तीर ने,दी दिग्गी को चोट।।
बुआ गद्दी की तरफ,हाथ भतीजा थाम।मानो पंजे से हुए,स्वयम विधाता बाम।।
जहां बुजुर्गों की सभा,यौवन को ठुकराय।उनकी हालत एक सी,सौ सौ ठोकर खाय।।
काया में कूबत नहीं,पककर बाल सफेद।ऐसा नेतागण करें ,पर्वत में भी छेद।।
यूपी में भी संघ इक, बसत जहां विद्वान।अब पंजे की राहचल,बस थोड़ा मेहमान।।
पढेलिखे तो क्या हुआ,परिवर्तन से दूर।जाने कैसे नशे में,नेतागण हैं चूर।।
-उदयराज मिश्र
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