


तन निरोग अति सुंदर काया, जिसे देख कर मन ललचाए.
गृहणी होवे लक्ष्मी जैसी, सुमुख सुंदरी अति मन भाए ।
सुमेरसरिख संपत्ति घर माही, कुबेर भी जिसको देख लजाये।
यश कीर्ति चहु दिश में फैली, नाम लेत सब लोग सराहे।
उक्त सभी जो मिले भाग्य से, व्यर्थ समझ बिन प्रीत राम से।
हरि के चरण बिना प्रीतिके, हीरा भी है मिट्टी जैसे।
जीवन को यदि सफल बनाना, कर संकल्प प्रभु को पाना।
निशि वासर कर यह ध्याना, केहि विधि होय मोर कल्याना।
मेजर (डॉ. )बलराम त्रिपाठी
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