

शिक्षक और सामाजिक परिवर्तन
अम्बेडकर नगरजिले July 5, 2020 Times Todays News 0

किसी भी राष्ट्र का उत्कर्ष और पराभव इसपर निर्भर करता है कि वहाँ के शिक्षक कैसे हैं और वे अपने उद्देश्यों के प्रति कितने जागरूक हैं ,न कि तकनीकी और मशीनरी के विकास और उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रचलन तथा सरकारों के सत्तापरक विभेदनकारी नारों से।
वस्तुतः सभी प्रकार के तकनीकी ज्ञान का अजस्र स्रोत शिक्षक ही हैं।मशीनें जहां उपभोक्तावाद को बढ़ावा देती हुई आरामदायक आवश्यकताओं की पूर्ति की हेतु होती हैं वहीं शिक्षक इनका सृजनकर्ता,प्रयोगकर्ता होने के साथ साथ नैतिक और मानवीय मूल्यों का संवाहक भी होता है।मानव को मानव से जोड़ने और समाज की सुषुप्त अंतर्चेतना को जागृत करने का सर्व प्रामाणिक प्राचीन से अर्वाचीन केंद्र शिक्षक ही होता है।इतिहास साक्षी है कि विदेशी आक्रांताओं के पैरों तले रौंदती हुई कराहती भारतभूमि का आर्तनाद जहां तत्कालीन राजाओं,महाराजाओं और गणप्रमुखों ने नहीं सुनी और सिकन्दर के समक्ष समर्पण करते गए तब भी तक्षशिला का एक शिक्षक विष्णुगुप्त ही राष्ट्रवन्दना के स्वरों को उच्चरित करते हुए राजसत्ताओं को चुनौती देने का साहस मात्र ही नहीं किया था बल्कि अपने संकल्प से अखण्ड भारत का निर्माण करते हुए विलुप्तप्राय से नादान बालक को सम्राट चन्द्रगुप्त बनाया था।वीर शिवाजी के लिए जो कार्य समर्थ गुरु रामदास ने किया कदाचित महाराणा प्रताप के लिए उससे कम कार्य भामाशाह ने भी नहीं किया।टीपू सुल्तान को इतिहास में वीर पुरुष प्रमाणित करवाने वाले कोई और नहीं बल्कि उनके शिक्षक और मंत्री पुरनिया पण्डित ही थे।पराधीन भारत में जबकि छुवाछूत की भावनाएं जनजन में घर कर गयीं थीं तो अछूत समझे जाने वाले बालक भीमराव रामजी सकपाल को अपनी जातीय उपाधि अम्बेडकर(ब्राह्मणों की एक जाति) प्रदान करते हुए पुत्रवत शिक्षा प्रदान करने वाला कोई अधिकारी,मंत्री,राजा या राजनेता नहीं अपितु शिक्षक पण्डित महावीर अम्बेडकर ही थे।मछुवारे के बेटे को बिना शुल्क नियमित रूप से पढ़ाने वाले औरकि शिक्षा का प्रबन्ध भी करने वाले कोई और नहीं अपितु गुरु नम्बूदरीपाद स्वामी एक शिक्षक ही थे।यही भारत कालांतर में आगे चलकर भारत का मिसाइलमैन और राष्ट्रपति बनकर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से मशहूर हुआ।इसप्रकार इतिहास साक्षी है कि सामाजिक संरचना में जनजागरण का मुख्य संवाहक कोई और नहीं सिर्फ और सिर्फ शिक्षक ही है।
वस्तुतः शिक्षक ही वास्तविक समाजवादी होता है।कक्षा शिक्षण में शिक्षक समभाव से ही सभी विद्यार्थियों को पढ़ाता है।जो विद्यार्थी अनुशासित और मेधावी होते हैं वही शिक्षक के चहेते होते हैं।यहां शिक्षक कभी भी जाति,धर्म और वर्ग नहीं देखता अपितु वह प्रत्येक विद्यार्थी को अपना पुत्रवत प्यार देता है।जिसदिन शिक्षक जातिवादी हो जाएगा उसीदिन धरातल से समरसता,प्रेम और सद्भाव मिट जायेगें तथा बिना अणुबम के प्रयोग जे ही मानवता विनष्ट हो जाएगी।इसप्रकार कहा जा सकता है कि शिक्षक ही सामाजिक परिवर्तन का अजस्र स्रोत है।
-उदयराज मिश्र
अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षक संघ, अंबेडकर नगर
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