


अभिषेक पाठक
आज़मगढ़- जिला अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में मरीजों से अच्छे इलाज के नाम पर मिल रही है। आरोप है कि आंख के ऑपरेशन के लिए एक मरीज से एक हजार से लेकर चार हजार रुपये तक लिए जा रहे हैं। दबी जुबान मरीजों का कहना है कि ‘सही’ ऑपरेशन और ‘सही’ लेंस डलवाने के लिए ये रुपये लिए जा रहे हैं। पैसे न देने पर सीधे कहा जाता कि आगे डॉक्टर की जिम्मेदारी नहीं होगी। ऐसे में मरीज पैसे देने को मजबूर हैं।नेत्ररोग विभाग पहले भी चर्चाओं में रहा है। यहां जब भी आंख के ऑपरेशन शुरू हुए हैं। अवैध वसूली के मामले सामने आए हैं। पिछले साल लगातार एक माह तक ऑपरेशन हुए। उस दौरान भी मरीजों से रुपये लेने के मामले मिले थे। मरीजों से अवैध वसूली हो रही है।बताया जा रहा है कि इनका अवैध वसूली का भी तरीका अलग है। वार्ड में आकर कुछ कर्मचारी चर्चा करते हैं कि जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा। जैसे पैसे खर्च करोगे, लेंस भी उतना ही अच्छा और ऑपरेशन सही होगा। पूरी गारंटी के साथ ऑपरेशन करने के दौरान शर्तें भी बताई जा रहीं हैं। मिठाई के तौर पर एक हजार से लेकर चार हजार रुपये तक लिए जा रहे हैं। अब तक सैकड़ों लोगों के ऑपरेशन हो चुके हैं। मरीजों ने लेंस और ऑपरेशन के नाम पर रुपये भी दिए हैं, लेकिन कोई उसकी शिकायत करने को तैयार नहीं है। हालांकि दबी जुबान वे यह स्वीकार कर रहे हैं। जबकि सरकार दावा करती आ रही है कि जिला अस्पताल में आंख के ऑपरेशन निशुल्क होते हैं।बाहर से लिखी जा रहीं दवाएं- सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के अनुसार बाहर की दवा लिखना गलत है। तत्कालीन सीएमएस ने इस पर रोक भी लगाई थी। लेकिन अब फिर ये व्यवस्था शुरू हो गई है। नेत्ररोग विभाग में अधिकतर मरीजों को बाहर की दवा ही लिखी जा रही है। मरीजों को अस्पताल से नाममात्र की दवा नहीं दी जा रही। बताया जाता है कि अस्पताल के सामने स्थित कुछ मेडिकल स्टोर संचालकों से डॉक्टर व अन्य कर्मचारियों का कमीशन तय है। खासकर मरीजों से एक मेडिकल स्टोर संचालक से ही दवा लाने को कहा जाता है।सरकार ने गरीबों के ऑपरेशन के लिए एक रुपये का शुल्क निर्धारित किया है। दलाल इस खेल में सक्रिय हैं, उन्हेें रुपये देने के बाद ही आपरेशन की डेट मिल पाती है। दिलचस्प यह कि अरसे से चल रहे वसूली के इस खेल से जिम्मेदार खुद को अनभिज्ञ बता रहे हैं।
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