बस इतनी मोहलत होनी चाहिए.. बस इतनी मोहलत होनी चाहिए..
बस इतनी मोहलत होनी चाहिए किअब जब भी मिलेंअपने अफसोस,जाने अनजाने हुई गलतियांसबकी एक मुश्त माफी मांग ले,गिले शिकवे की कोई गुंजाइश ना छूटेना... बस इतनी मोहलत होनी चाहिए..

बस इतनी मोहलत होनी चाहिए कि
अब जब भी मिलें
अपने अफसोस,
जाने अनजाने हुई गलतियां
सबकी एक मुश्त माफी मांग ले,
गिले शिकवे की कोई गुंजाइश ना छूटे
ना पूछेंगे तुम्हारी गुज़र का सवाल
घरवालों का हाल ना पूछेंगे
पर बताएंगे तुम्हें,
कि तुम्हारी मौजूदगी कैसे माहौल को
खुशगवार करती है,
और तुम्हारी गैरमौजूदगी मौत से बत्तर करती हैं
दिलाएंगे यकीन तुम्हे
तमाम नामंजूरियों, दुत्कारों के बाद भी
दुनिया का एक कोना अब भी है
जहां तुम्हारे बगैर ज़िंदगी थम जानी है,
पूछ लेंगे बहाने से,
छोटी ही सही
ख्वाहिश तुम्हारी,
मुमकिन होता तुम्हारे चेहरे पर
उतरता इत्मीनान भी आज ही देख लेते,
बाकी खैरियत जानने का सवाल भी बेफिज़ूल,
और जवाब भी बेमानी,
कि जब खुद को मज़े में बता रहा शख्स भी
इस बात से बेखबर है,
कि वो इस दुनिया में चार दिन की जिन्दगी में
बस तीन दिन का मेहमान और है।

डिम्पल राकेश तिवारी

अवध यूनिवर्सिटी चौराहा
अयोध्या।

Times Todays

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