

जीवन-सफ़र
अम्बेडकर नगरउत्तर प्रदेशजिलेराज्यसाहित्य जगत March 28, 2021 Times Todays 0

गिरना व उठना सफ़र ज़िन्दगी का,इसी से है साधित सफ़र जिन्दगी का।
कोई क्या किसी को गिरायेगा हमदम,नज़र से जो अपने गिरता है हरदम।।
दुःखों व सुखों की दो नदियां हैं बहती,इसी बीच जीवन की चलती है कश्ती।
दुःखों से दुःखी हो क्यों रोता है ये जन,सुखों व दुःखों बीच जब चलता है जीवन।।
हो जीवन की नौका के पतवार अपने,जिधर चाहो ले जाओ कश्ती को अपने।
सुना है बड़े ओहदे वाले हो जो तुम,पर जीवन की सच्चाई न समझे कभी तुम।।
रही नाज़ ओहदे की धन-दौलतों की,कभी न किसी को तवज़्ज़ो दिए तुम।
न माता को समझे न भ्राता को समझे,रहे तुम सदा दूर पिता से भी अपने।।
इसी कर्म कश्ती ने जीवन को मोड़ा, सुखों से जीवन के रिश्तों को तोड़ा।
लिए घेर अनगिनत बीमारी ने तुमको,नहीं नींद आती है विस्तर पर तुमको।।
मेरी लेखनी धार कहती है तुमसे,संभल कर चलो जिंदगी -राह अपने।।
रचनाकार–सुरेश लाल श्रीवास्तव अम्बेडकरनगर
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