महाशिवरात्रि पर विशेष:-भाग्यलेख बदलने वाले शंकर का पर्व महाशिवरात्रि पर विशेष:-भाग्यलेख बदलने वाले शंकर का पर्व
उदय राज मिश्र महाकवि बाण ने अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार का दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए जगदीश्वर श्रीशिव की महत्ता का वर्णन करते हुए लिखा है-रजोजुषे... महाशिवरात्रि पर विशेष:-भाग्यलेख बदलने वाले शंकर का पर्व

उदय राज मिश्र

महाकवि बाण ने अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार का दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए जगदीश्वर श्रीशिव की महत्ता का वर्णन करते हुए लिखा है-रजोजुषे जन्मनि सत्ववृत्तये प्रजानाम प्रलये तमस्प्रिषे।अजाय सर्ग स्थिति नाश हेतवे त्रयीमयाय त्रिगुणात्मके नमः।। अर्थात सृष्टिरचयिता श्रीब्रह्मा जी द्वारा रजोगुण का भोग कर पैदा की गई और सतोगुण का भोगकर श्री विष्णु द्वारा लालित पालित सृष्टि महादेव द्वारा तमोगुण के स्पर्शमात्र से प्रलय का शिकार हो समाप्त हो जाती है।इसप्रकार शंकर को सृष्टि का विनाश करने के लिए तम गुण का भोग करने की लेशमात्र आवश्यकता नहीं होती।इससे स्प्ष्ट है कि भले ही त्रिदेवों की अपनी अपनी महत्ता हो किन्तु जगदीश्वर के रूप में नीलकंठ श्री शंकर का स्थान सर्वोच्च शिखर पर है।कदाचित महाशिवरात्रि लोककल्याण और लोकमंगल के हिताय बोधोत्सव का महापर्व श्री शंकर की उपासना द्वारा दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदलने का महोत्सव ही है।जिसकी महत्ता गोस्वामी तुलसी जी स्वयम लिखते हैं कि-भाविह मेंटि सकहिं त्रिपुरारी। वस्तुतः शिवरात्रि किसी भी वर्ष में 12 होती हैं जो कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हरमाह पड़ती हैं किंतु फाल्गुन मास की चतुर्दशी की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।फाल्गुन मास की चतुर्दशी के दिन ही निराकार ब्रह्म साकार रुद्र रूप में प्रकट हुए थे।जिन्हें अग्निलिंग के नाम से जाना जाता है।इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारम्भ हुई थी।जिसके कारण इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। पुराणों के अनुसार फाल्गुन माह की चतुर्दशी को ही समुद्रमंथन से हलाहल निकला था।जिससे सम्पूर्ण सृष्टि के विनाश का संकट उत्तपन्न हो गया था।अतः सृष्टि के कल्याण हेतु महादेव ने विषपान करते हुए उसे कन्ठ पर ही रोक लिया।जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ नाम से जाने जाने लगे।विषपान करने के कारण ही शंभु को जगदीश्वर के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

लेखक : उदय राज मिश्र

शास्त्रों के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अनिष्ट या पापग्रहों की स्थिति को शंकर दुर्भाग्य से सौभाग्य में बदल सकते हैं।देव और दानव सभी लोग इन्हें सहज ही प्रसन्न करके मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।यही कारण है कि तत्काल प्रसन्न होने के आधार पर ही शंभु को आशुतोष भी कहा जाता है। महाशिरात्री वस्तुतः शैव लोगों का महोत्सव है जो भारत,नेपाल,बांग्लादेश,पाकिस्तान,अमेरिका और श्रीलंका आदि देशों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है।व्याकरण शास्त्र के प्रणेता आचार्य पाणिनि को प्रत्यहारों द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान देने वाले शंकर आदियोगी और कल्याण के देवता हैं।जिन्हें विल्बपत्र,चावल,भांग,धतूर,बैर व गंगाजल द्वारा पूजित कर सहज ही मानव अपनी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।मृत्यु को भी टालकर अमरत्व प्रदान करने वाले मृत्युंजय श्री शंकर का ये पर्व जगदकल्याण और प्राणियों को आत्मबोध का पर्व है।

-उदयराज मिश्र

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