

“मत रोया करो”
अयोध्याजिलेराज्य February 10, 2021 Times Todays 0

कितनी पारदर्शी आंखें हैं तुम्हारी
पृथ्वी पर पानी के सबसे पहले सोते के तरह की
मैं झाँकता हूं और
पढ़ लेता हूं तुम्हारी आत्मा,
तुम
ईश्वर की लिखीं
किन्हीं पंक्तियों के तरह की लगती हो,
मत रोना कभी
तुम्हारे रोने से सूख जाता है धरती पर से
पानी का सबसे पुरातन स्रोत
तुम्हारे रोने से
पीली पड़ जाती है पेड़ों की पत्तियां
तुम नहीं जानती
तुम्हारा रोना एक वृक्ष के साथ ही
समूचे सृष्टि की सिकुड़न है..
मत रोया करो,
तुम नहीं जानती जब तुम रोती हो तब
समय अपनी तय गति से धीमा हो जाता है.
डिम्पल राकेश तिवारी अवध यूनिवर्सिटी चौराहा अयोध्या
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