

जीवन की यथार्थता
अम्बेडकर नगरजिलेराज्य February 10, 2021 Times Todays News 0

उस पार हमारा बचपन था, इस पार जरा वय दीख रहा ।
जीवन के दो ध्रुवों मध्य, आगत अतीत को सोच रहा ।।
लालिमा बीच दिनकर निकले, लालिमा अस्त की सूचक भी ।
यह उदय-अस्त परिचायक है, सुख-दु:ख संयुत है जीवन भी ।।
पहले क्या था, अब नहीं रहा, अब क्या है आगे क्या होगा ?
जीवन की बदलती तस्वीरें, सकेत करें कि नया होगा ।।
जो क्षुद्र बीज था सरसो का, अवसर पाकर वह बड़ा हुआ ।
निज यौवन की काया से उसने, मधुमास को सुरभित बना दिया ।।
इस क्षुद्र बीज की क्षमता यह, प्रकृति प्रदत्त अवसर ही है।
किसको कितना अभिनय करना, यह नियत नियामक की ही है ।।
जनन, बालपन अरु यौवन, फिर प्रौढ, वृद्ध वय मरण तलक ।
सब ईश्वर पर ही निर्भर है, जीवन सत्ता किसकी कब तक ।।
हे मानव! तेरी हँसी-खुशी, यौवन का रूप खजाना भी ।
हैं काल क्रूर के वशी सभी, मत नाज करे इन पर तू कभी ।।
मत बून कल्पनाओं की चादर, वश कर्मशील हो जीवन चर ।
पाने को आत्म-तुष्टि का वर, शुभ कर्मों का तू आदर कर ।।
है असीम क्षमता धरणी की, क्षमा जिसे सब कहते हैं ।
चर-अचर सभी की जननी यह, धरती माता इसे कहते हैं ।।
जीवन की सारी गतिविधियाँ, वसुन्धरा मध्य ही होती हैं ।
लेते हैं जन्म सभी इस पर, पोषण और मरण इसी पर है ।।
हैं प्रकृति नियन्त्रित जीव सभी, उसके बल पर ही जीवित हैं ।
प्रकृति प्रतिकूल आचरण में, हम मानव प्राणी सर्वोपरि हैं ।।
निज ज्ञान, बुद्धि और बल पर, दम्भ जिसे अति ज्यादा है ।
उस पशु-पक्षी भक्षी मानव की, प्रभुता सब जीवों पर है ।।
सब जीवों का जाति प्रेम, देखें तो परं अलौकिक है ।
विचरण करते हैं साथ सभी, सहयोग भाव भी अनुपम है ।।
सन्तान-प्राप्ति हित में खगकुल, मिलकर नीड़ निर्माण करें ।
आवास छीन निज कुल जन से, मानव जीवन पर दम्भ करे ।।
जल-डूबन से कोई मरता है, जल बिना कोई मर जाता है ।
सोंचे तो जीवन की प्रभुता, कितनी नश्वर होती है ।।
सुरेश लाल श्रीवास्तव
प्रधानाचार्य
जीआईसी अम्बेडकरनगर
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