“सहेजने की आदत” “सहेजने की आदत”
उफ्फ ये सहेजने की पुरानी आदत मेरी,कंही उपेक्षाओं सहेजा,तो कंही कलंक को,तकलीफो वाली सारी तारीख़ भी हृदय में सहेज रखा है,तुम्हारा प्रेम भी तो... “सहेजने की आदत”


उफ्फ ये सहेजने की पुरानी आदत मेरी,
कंही उपेक्षाओं सहेजा,
तो कंही कलंक को,
तकलीफो वाली सारी तारीख़ भी हृदय में सहेज रखा है,
तुम्हारा प्रेम भी तो इसी हृदय में सहेज रखा है,
हज़ारों झुठ,लाखों सच सब कुंछ सहेज रखा है,
माँ की पुरानी साड़ी आलमारी में सहेज कर रखी है,
पिता का स्नेह और स्वम के लिये चिंता वाली छवि भी मन मे सहेजी है,
भाई का दिया रक्षाबंधन वाला धागा भी तो सहेज रखा है
अपनो से मिला धोखा और गैरों से मिला प्रेम सब सहेजा है,
मुलाकातों की तारीखें और बिछड़ने की अवधि और बहुत सी अनकही भी सहेज कर रखी है
उफ्फ ये सहेजने की पुरानी आदत मेरी।

डिम्पल राकेश तिवारी अवध यूनिवर्सिटी चौराहा,अयोध्या।

Times Todays News

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