

–: “मैं” को तो पहचान:–
साहित्य जगत January 11, 2021 Times Todays 0

शरीर के प्रत्येक अंग को हम कहते हैं मेरा है मेरा है मेरा है।
जब प्रत्येक अंग मेरा है तो फिर मैं कौन हूं?
मैं खोजने के बजाय हम शरीर को ही मैं मान लेते हैं।
यही भयंकर भूल हो जातीहै। ……मेजर डॉ. बलराम त्रिपाठी
–: “मैं” को तो पहचान:–
हाथ मेरा शि र भी मेरा, आंख नाक सब मोर।
पेट -पीट संग कान मुख, उ तक पैर सब मोर।
मन बुद्धि भी है मेरी, शकल गात नहि और।
शरीर अंग समुदाय सब, सब के सब हैं मोर।
बुद्धिमान नरभी कहें, यह शरीर है मोर।
फिर क्यों देहाध्यास बधे, आश्चर्य महा अति घोर।
शरीर मेरी है सत्य यह, ” मैं” कीकर पहचान।
गात बदलता नित्य ही, पर “मैं” को अबदल जान।
अंग है जितने गा त में, जर्जर नित हैं होत।
विवेक सदा इंगित करें, फिर क्यों न जगे मन मोर।
शरीर मेरी है पर ” मैं “नहीं, अनुभव करें सुजान।
पकड़ इस सच्चे ज्ञान को, आत्म रूप पहचान।
मेजर डॉ. बलराम त्रिपाठी
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